कविताएँ / ऋचा

कविताएँ
- ऋचा

(“उत्तर सत्य समय घोर विडंबनाओं का समय है। समाज सत्य और तथ्य की जगह व्यक्तिगत भावनाओं, आग्रहों और पूर्वाग्रहों से चालित है।समावेशन की तरफ बमुश्किल दो कदम आगे बढ़े हम मीलों पीछे घिसटते जा रहे हैं।सामाजिक, नैतिक, मानवीय मूल्य गंभीर रूप से घायल हैं। सत्य असत्य, इतिहास मिथक सब गड्डमड्ड हो गए हैं। महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार, मानवाधिकारों का उल्लंघनऔर सामाजिक-आर्थिक हर तरह की असमानताएँ जिन्हें खत्म होते जाना था अनंत लगने लगी हैं।महिला, मजदूर, प्रकृति सभी अपने नैसर्गिक अधिकारों से और भी ताकत से बेदखल किए जा रहे हैं।पितृसत्ता, ब्राह्मणवाद, सांप्रदायिकता सबने परम्परा और संस्कृति का मुखौटा पहन लिया है। फासीवाद लोकतंत्र का मुखौटा लगाकर विश्व भर में घूम रहा है। पहचानेगा कौन? और पहचान भी लिया तो टोकेगा कौन? टोकेगा बुद्धिजीवी, मगर उसकी भाषा सामान्य जनों तक नहीं पहुंचती।ऐसे में ऋचा अपनी सहज सरल और संप्रेषणीय भाषा में टोकती हैं, बोलती हैं और नैसर्गिक अधिकारों की घोषणा करती हैं अपनी कविताओं में।वह मुखौटों को पहचानती हैं।समाज की संवेदनहीनता, उदासीनता पर सवाल करती हैं।प्रेम से विहीन होती पृथ्वी और हमारी भाषा के प्रति चिंता जाहिर करती हैं और व्यंग करती है उन 'गुलू मुलू' बुद्धिजीवियों पर, जिनकी जटिल भाषा केवल बड़े मंचों पर ही समझी जाती है, उनकी परिवर्तनकामी आवाज उनके निबंधों की मोटी-मोटी पुस्तकों में दबी रह जाती है। आम जीवन में, आम जनों की भाषा में, आम जीवन की व्यवहारिक समस्याएं सुलझाने में उनका ज्ञान बेमानी साबित होता है। इस आलोचना के दायरे में वो अपनी तात्कालिक संवेदना को भी रखती हैं। एक बारगी उनकी कविताएं सपाट बयानी सी लगती हैंलेकिन शायद उत्तर सत्य समय जब 'सब्जेक्टिव इंटरप्रेटेशन' की जगह 'सब्जेक्टिव मिसइंटरप्रेटेशन' लेता जा रहा हो क्यों कविता सीधी सपाट भाषा में कही जाए  'मिसइंटरप्रेटेशन' की कम से कम गुंजाइश छोड़ते हुए।पढ़िए ऋचा की कुछ कविताएं।” -कविता कादम्बरी )

 

. कब्ज़ा

 

औरत का अपने शरीर पर

मजदूरों का मजदूरी पर

पेड़ो का जंगलों पर

पानी का समुद्र पर

कब्ज़ा होना ही चाहिए।

 

 

होना ही चाहिए

झंडे पर नागरिकों का कब्ज़ा

शिक्षा के संस्थानों में,

कब्ज़ा शिक्षा का

 

और पूरे विश्व में

प्यार का कब्ज़ा

 

 

.मृत भाषा

 

आंकड़ों की कहें तो

अगर दस हज़ार से कम लोग बोलें

तो भाषाएँ विलुप्त होने लगती हैं

धीरे-धीरे उसे मृत भाषा मान लिया जाता है

और भाषा के साथ ही मृत होने लगता है

उन भाषाओं में जिया हुआ हर सच

संस्कृति, इतिहास और यादें

 

अचानक ही

बहुत कम होने लगे हैं

प्रेम की भाषा बोलने वाले लोग

खतरा बढ़ गया है

चारों ओर

 

क्यूँकि विलुप्त होने पर यह भाषा

इंसान को मृत मान लेना चाहिए।

 

 

.रोहित वेमुला

 

वो जानता था हमारी हकीकत

हमारी चुप्पी उसने सुनी थी

पढ़ी थी

उसने परखा होगा हमारे मौन को

और हमारी भाषा भी

 

वो जानता था कि यदि

छोटे-मोटे आंदोलन भी हुए

तो वो संभव है

सिर्फ उसकी लाश पर

उसकी मौत ही उसे

बना सकती है नायक

 

बड़े-बड़े लेखकों ने कहा है

कि ये दुनिया रंगमंच है

वो जानता था

किसी की मौत पर ही

जाग पाती है संवेदना

पॉपकॉर्न के बीच में

एक-आध सिसकी

इस थिएटर में

किसी की मौत से ही संभव है

 

वो जानता था

बिना उसकी मौत

उसका जीवन दिख भी नहीं पाएगा

हमारे आस-पास कई रोहित तैयार हैं

जो शायद न्याय चाहते हैं

जो शायद नायक बना दिए जाएँ

उनकी मौत के बाद

 

वो जानता रहा होगा

कि उसकी बरसी पर ही

मैं भी लिखूँगी

कोई कविता

और कवि बन जाउंगी

थोड़ी देर के लिए

 


. गुलू मुलू स्कॉलर

 

वैसे तो तुम बड़े आदमी हो गए हो

हज़ारों लोग ऐसा मानते हैं

कुछ ने तो सजा रखा है

तुम्हारा ऑटोग्राफ फ्रेम करा कर

 

बड़े प्रकाशक किताबें छाप चुके हैं

बड़ी-बड़ी बातें बड़ी आसानी से

तुम जटिल भाषा में बतलाते फिरते हो

 

जब से जाना है

कि रोटियां नहीं बनती

तुमसे गोल

नहीं साफ हो पाता दीवारों पर लगा झोल

 

तुम्हें भाषायी दिक्कतें आती है

सब्जी वाले भइया से बात करने में

तुम्हारे ज्यादातर दोस्त पाए जाते हैं

बस राजधानी में

 

तुम्हारे लिए बाकी सब लोग

केवल विषयवस्तु हैं

नए शोध के

 

सच पूछो तो मुझे

बड़े बुद्धू से लगते हो

गुलू मुलू से बुद्धू

 

तुम्हारे परम ज्ञान की

एक भी छींट नहीं पड़ पाती

मुझ पर या मेरी माँ पर

या फिर तुम्हारी माँ पर

या पड़ोसी पर

 

समय रहते कुछ सीख लो

गुलू मुलू स्कॉलर!

 

( ऋचा पटना कॉलेज के अंग्रेजी विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने पटना विमेंस कॉलेज, सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ बिहार, और आईआईएम रांची जैसे विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों में शिक्षण कार्य किया है। डॉ. ऋचा के हिंदी और अंग्रेजी में दो कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं: "सुनी - सुनाई बातें" और "Worms on Flesh" वे विशेष रूप से स्त्री-केंद्रित विषयों पर लेखन और पठन-पाठन करती हैं।  सम्पर्क drricha.eng@gmail.com )                                                                                  

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-53, जुलाई-सितम्बर, 2024 UGC Care Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन  चन्द्रदीप सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

2 टिप्पणियाँ

  1. महत्वपूर्ण कविताएं। ख़ासतौर से 'रोहित वेमुला' कविता आने वाले वक्त में भी मेरे साथ रहेगी। कवि ऋचा को बहुत बधाई और शुभकामनाएं। 'अपनी माटी' का आभार 🌼

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  2. सीधी-सरल भाषा में गंभीर विषयों पर शानदार कविता है। अच्छी कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई ।

    जवाब देंहटाएं

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