कविताएँ : / विजय राही

कुछ कविताएँ
- विजय राही


विजय राही
(विजय राही राजस्थान में कविता के लिहाज़ से युवा स्वर हैं जो अब तक देश की कई प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में छप चुके हैं और वर्तमान में राजस्थान की कॉलेज शिक्षा में ही हिंदी के सहायक आचार्य हैं. न्यारी ढंग की कविताई यहाँ अनुभव होगी. सरल और सपाट लगती हुई इन कविताओं में गहरा भाव-बोध महसूसा जा सकता है. भीतर ही भीतर कहीं कोई धारा बहती हुई लगेगी. )

(1) अभ्यास

मुझे पूरा यकीन है
एक दिन ज़रूर पागल घोषित कर दिया जाऊँगा
सो मैं अभी से पत्थर फेंकने का
अभ्यास कर रहा हूँ

(2) शहर

यह शहर केवल नाम भर का है
इससे तो अच्छा है हमारा गाँव
कम से कम आगरे का पेठा तो मिल जाता है वहाँ
जो पहली बार मिलने पर खिलाया था तुमने मुझे

यहाँ एक भी ऐसी चीज़ नहीं
जिसे देखकर मैं तुमको याद करूँ
परन्तु यह सब अच्छा ही है मेरे लिए
क्योंकि तुम्हारी जब याद आती है
मेरी आत्मा सीझ जाती है

(3) जमीन माता

जमीन माता
भले ही मुँह से नहीं बोलती है
लेकिन जमीन का धणी
जब जमीन पर डोलता है
जमीन माता भी खुशी में डोलती है

(4) झाड़ू

पक्षियों के पास होती हैं पंख की झाड़ू
पशुओं के पास होती हैं पूँछ की झाड़ू
आसमानों की झाड़ू हैं बादल
और धरती की झाड़ू हैं आँधियाँ

कुदरत के पास कितनी ही
दृश्य और अदृश्य झाड़ू हैं
काश मेरे पास भी होती कोई ऐसी झाड़ू
जिससे बुहार पाता अपनी आत्मा को

(5) अहिंसा

कौन कहता है आज ऐसा
"मुझे तुम्हारे साथ रहना है
तो क्यों नहीं तुम्हारे जैसे कपड़े पहनूँ !"
ऐसी बात वही कह सकता है
जिसको आपसे बहुत प्रेम हो

अगर आज कोई ऐसा कहे तो
मैं उसके हाथ चूम लूँ और बाँहों में भर लूँ
कौन होगा जिसके पास इतनी करुणा है

उन्होंने हमको बताया
बहुत भले तरीके हैं ख़ून-ख़राबे के अलावा भी
सत्ता-परिवर्तन या आततायी सरकार को हटाने के लिए
लेकिन हमने गोलियाँ दाग दी उनके सीने में
जबकि वे हमारे लिए प्रार्थना करने जा रहे थे

आज हमारी ताकत बंदूक, बम, मिसाईल हैं
जबकि उन्होंने हमारे लिए सारी लड़ाई लड़ी
सिर्फ़ और सिर्फ़ अहिंसा के बल पर
पहले-पहल जिस पर हम भी हँसे थे

विजय राही
बिलौना कलॉ, लालसोट, दौसा (राजस्थान), पिनकोड-303503

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-53, जुलाई-सितम्बर, 2024 UGC Care Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन  चन्द्रदीप सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

23 टिप्पणियाँ

  1. अद्भुत साहित्यकार व अद्भुत साहित्यिक कृतियाँ 😊

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  2. बहुत सुंदर आदरणीय

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  3. बहुत सुंदर कविताएं हैं राही जी 😍

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  4. वाक़ई अपने ढंग की कविताएँ हैं। बहुत शालीनता से अपना पक्ष दर्ज करवाती हुई। बधाई विजय भाई।

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  5. सभी कविताएँ ऐसी हैं जैसे प्रकृति के किसी सहज सिद्धांत को पकड़ती हैं और उसकी कविता के रूप में स्थापना हो। अद्भुत ।

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  6. बहुत अच्छी कविताएं ।वर्तमान ग्रामीण एवं शहरी जीवन की विचित्र जीवित एवं सशक्त अनुभूति को व्यंजित कर रही है

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  7. सादगी भरी कविताएं है।

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  8. बहुत बहुत बधाई विजय भाई आन कविताओं की खुशबू दूर तलक फैलेगी।

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  9. सरल भाषा में गहरी संवेदना की कविताएं हैं।पहली,चौथी और पांचवीं बेहतरीन है।विजय भाई को खूब बधाई।

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  10. अद्भुत। बहु सुन्दरम्

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  11. बेहतरीन कवितायें। बधाई

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  12. विजय राही की कविताएं मिट्टी की महक का जीवंतता के साथ अहसास कराती हैं.. भाषा के देशीपन को ये स्वयं गढ़ते हैं जिससे लोक जीवन इनकी कविताई से साकार हो उठता है..

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  13. बहुत ही अच्छी कविताएं

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  14. पहली कविता ख़ुद को ख़ुद के समाने साबित करवाती है। पढ़कर उतनी देर तक मुस्करा सकते है जितनी देर तक आगे कोई काम न पड़ जाए। बहुत सुंदर ❤️❤️❤️

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  15. आप सब साथियों की टिप्पणियाँ बहुत उत्साहवर्धक हैं। आप सबका दिली-शुक्रिया। आपसे जोड़ने के लिए 'अपनी माटी' का आभार 🌼

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  16. सबके पास है अपना झाड़ू। वाह क्या खूब लिखा है आपने। काश हम भी ऐसे ही हर वर्ष ,चाहे एक बार ही सही दीपावली की सफाई की तरह अपने मन को साफ कर पाते। भरा रहता है वर्षो पुराना क्रोध, दर्द, बदले की पीड़ा,कड़वी यादें,अधूरा प्रेम। क्यूं न हर साल इन्हे भी झाड़ के साफ कर दिया जाए बादलो की तरह, धरती की आंधियों की तरह। शेष कविताएं भी उतनी ही मार्मिक है। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं।

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  17. विजय की कविता ग्रामीण संस्कृति एवं जमीन से जुड़ी हुई है

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  18. हेमंत कुमारअक्तूबर 25, 2024 7:39 pm

    'झाड़ू,' 'जमीन माता', ' अहिंसा' सरीखी कविताएँ पढ़िए।कविता के साम्प्रतिक मुहावरे को विजय राही बखूबी पकड़ते हैं। वे कविताएँ रचते नहीं कहते हैं। एकदम सहज बोलचाल के अंदाज़ में उनकी कविताएँ पाठक से बात करती हैं। फिर जुगाली की तरह भीतर से संवेदना उमड़ती है जिसमें बाहर का भीतर जाकर फिर लौटता है भीतर को पौसने के लिए।

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  19. 'Zameen mata', 'sahar' or 'abhyas' kavita achi lagi. apni mati k kavi ko bahut badhai or shubhkamnaye.

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  20. विष्णु शर्माअक्तूबर 27, 2024 8:00 pm

    लोक रंग के विभिन्न आयामों को संस्पर्श करती
    हुई कविताएं । अनुज विजय को बहुत शुभकामनाएं।

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  21. रही की राहो में कंटक बहुत रहे होंगे
    एक एक शब्द टीस लिए बोलता है
    और अलग रह पर चलने वाला रही
    अलग लोगो को अलग अंदाज़ में
    कहे की तुम सुधर जाओ अब
    वर्ना मै पत्थर फेकने का अभ्यास
    तुम्हे सुधारने के लिय ही किया है
    क्योंकि पागल मैं नहीं हूँ
    जमाना ख़ुद बी ख़ुद पागलखाना है
    और जमाने की राहे वहीं जाती है
    फिर भी ,रही, तटस्थ है और रहेगा भी!

    सादर:
    Shiv Ram MEEMROTH
    फेसबुक:srmeemroth

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  22. सुंदर कविताएं

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  23. रतन लाल जाटनवंबर 14, 2024 7:37 pm

    राही जी की कविताएँ 21वीं सदी की एक अलग ही भाषा शैली में हर व्यक्ति के दिल को छूती जादुई कविता है

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