शोध सार : समान नागरिक संहिता का वैश्विक परिप्रेक्ष्य / मनोज कुमार भारी

समान नागरिक संहिता का वैश्विक परिप्रेक्ष्य
मनोज कुमार भारी

शोध सार : समान नागरिक संहिता व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता का आदर्श है, जिसका मुख्य उद्देश्य कानूनीमामलों के लिए एक स्पष्ट, सुलभ, नागरिक कानून से संबंधित एकरूप, सुसंगत, व्यवस्थित, विनियमों का कानूनी संग्रह तैयार करना है, जो इसके दायरे में आने वाले सभी व्यक्तियों या संस्थाओं पर समान रूप से लागू हो। टेंज़ा हरक्लोत्ज़ लैंगिक असमानता के लिए इसे रामबाण मानती हैं, आधुनिकता की कुंजी भी कहती है, लेकिन वो मानती हैं कि राज्य केंद्रित कानूनी रूढ़िवादिता की बजाय अब लोगों ने मानकात्मक आदेशों को मानना शुरू कर दिया है, जो कि राज्य की पहुँच से परे होते हैं और सर्वोच्च न्यायालय भी केवल आलंकारिक रूप से यूसीसी की पक्ष की बात करता है. फ्रांस में आप्रवासन का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न अफ्रीकी, एशियाई और यूरोपीय पृष्ठभूमि के लोगों के साथ एक बहुसांस्कृतिक समाज का निर्माण हुआ । वैश्विक परिदृश्य में समान नागरिक संहिता का सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण भी फ़्रांस में द्रष्टव्य है जिसे "कोड सिविल" के नाम से जाना जाता है, जिसे 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट के द्वारा स्थापित किया गया था। तब वोल्टेयर ने शिकायत की थी कि फ्रांस भर में यात्रा करने वाले व्यक्ति को उतनी ही बार कानून बदलना होगा जितनी बार वह घोड़े बदलता है। नेपोलियनिक कोड ने समानता को लागू किया, जिसमें कानून के सामने सभी को बराबरी देने और निजी संपत्ति की सुरक्षा को संरक्षित किया गया। इसीलिए बोनापार्ट ने कहा कि उसकी असली महिमा चालीस लड़ाइयाँ जीतना नहीं है, जिसे कोई चीज नहीं मिटा सकती, जो हमेशा जीवित रहेगी, वह उसकी नागरिक संहिता है। इस नागरिक संहिता में 36 कानून और 2,281 अनुच्छेद हैं। इसे लागू करना एक संवेदनशील और जटिल प्रक्रिया है, जिस पर विभिन्न हितधारकों के साथ सावधानीपूर्वक विचार, संवाद और परामर्श की आवश्यकता है। भारत में सरकार को अपनी आबादी की विविधता का सम्मान करने के बीच सहिंताकरण की अभिवृद्ध करते हुए उचित संतुलन बनाने की जरूरत है।

बीज शब्द : समान नागरिक संहिता, लैंगिक समानता, संहिताकरण, बहुसांस्कृतिक, कोड सिविल, धर्मनिरपेक्ष स्वरुप, समतावादी समाज, मानक आदेश, लैंगिक संस्था, जनसांख्यिकी, अज्ञेयवादी।

मूल आलेख : समान नागरिक संहिता (यूसीसी) नागरिक मामलों से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों में एकरूपता का संविधान निर्माण के समय का कल्पित आदर्श है, इसी कारण भविष्य के लिए राज्य के नीति निदेशक तत्वों में अनुच्छेद 44 में प्रावधान किया गया कि "राज्य पूरे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।"1 वस्तुतः मसौदा अनुच्छेद पर बहस से संविधान सभा में टकराव होने और मुस्लिम सदस्यों की ओर से विरोध होने से इसे निदेशक सिद्धांत में रखना पड़ा, यानि राज्य को इस प्रावधान को तुरंत लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया गया था और इसके क्रियान्वयन में यह अपेक्षा की गई कि सभी समुदायों की सहमति से ही यह लागू होगा । इसे उस समय न लागू करने के पीछे तर्क दिया गया कि समान नागरिक संहिता धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है, "इससे मुस्लिम समुदाय के भीतर वैमनस्य पैदा होगा और इसमें शामिल विशिष्ट धार्मिक समुदायों की मंजूरी के बिना व्यक्तिगत कानून में हस्तक्षेप करना गलत था।"2 यद्यपि देश में पूर्व से ही समान नागरिक संहिता होने, महिलाओं के अधिकार इससे सुरक्षित होने, इसके लागू होने से देश की एकता में अभिवृद्धि होने तथा संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरुप हेतु इसको अपरिहार्य माने जाने के पक्ष में भी तर्क दिए गये थे, परन्तु तत्कालीन परिस्थितियों में यह संभव नहीं हो पाया । इस विषय पर भारत में विधि आयोग द्वारा सुझाव मांगे जाने के उपरांत मीडिया, अकादमिक वर्ग सहित सभी प्रमुख विचार-केन्द्रों पर विमर्श जारी है।

यूसीसी में यूनिफार्म शब्द एक ऐसी प्रणाली या कानून को संदर्भित करता है जो विभिन्न क्षेत्रों या न्यायालयों में सुसंगत और मानकीकृत है। यूनिफार्म शब्द से तात्पर्य "एक - रूप, चरित्र/प्रकार का; हमेशा एक ही रूप में होना/ बनाए रखना, जो अलग-अलग जगहों पर एक जैसा है या रहता है3" है; वहीं सिविल शब्द का अर्थ है- "नागरिक कानून से संबंधित"4 जिनमें अनुबंध, संपत्ति, पारिवारिक कानून, अपकृत्य जैसे क्षेत्र शामिल हैं। "कोड" कानून के एक विशिष्ट क्षेत्र या किसी विशेष क्षेत्राधिकार को नियंत्रित करने वाले 'कानूनों या विनियमों के व्यापक और व्यवस्थित संग्रह'5 को संदर्भित करता है, जो नागरिक मामलों, अपराधों या दंड से संबंधित कानूनों का एक सेट हो सकता है। यह विनिर्धारणकारी विनियमों का लिखित संग्रह है, जिसका मुख्य उद्देश्य कानूनी मामलों के लिए एक स्पष्ट और सुलभ ढांचा प्रदान करना है।6 अर्थात् इसका उद्देश्य नागरिक कानून से संबंधित एकरूप, सुसंगत, व्यवस्थित, विनियमों का कानूनी संग्रह तैयार करना है जो इसके दायरे में आने वाले सभी व्यक्तियों या संस्थाओं पर समान रूप से लागू हो। ऐसे कई राष्ट्र हैं जिन्होंने समान नागरिक संहिता लागू की है या उनकी कानूनी प्रणाली में इसके कुछ पहलू हैं, जिसके द्वारा सभी नागरिकों के धर्म की परवाह किए बिना राष्ट्रों ने विवाह, तलाक, विरासत और गोद लेने जैसे व्यक्तिगत मामलों को नियंत्रित किया है। संविधान निर्माताओं का लक्ष्य भारत को एक आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष और समतावादी समाज में बदलना था और सामान्य नागरिक संहिता उस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक आवश्यक कदम है। संहिताकरण के लिए संवेदनशीलता भी अपरिहार्य है, सामान्य नागरिक संहिता के विचार को भारतीय समाज की बहुलता पर विचार करना चाहिए और इसे विविध सांस्कृतिक प्रथाओं के प्रति संवेदनशीलता के साथ तैयार किया जाना चाहिए। यह व्यक्तिगत कानूनों में लिंग-आधारित भेदभाव को खत्म करने और भारत में महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देने में मदद कर सकती है, कानूनी प्रणाली को सरल बना सकती है, मुकदमेबाजी को कम कर सकती है और न्याय प्रशासन को सुव्यवस्थित कर सकती है।

जर्मन विधिशास्त्री टेंज़ा हरक्लोत्ज़ मौजूदा धार्मिक व्यक्तिगत कानून प्रणाली को बदलने के लिए भारत के लिए समान नागरिक संहिता को लैंगिक समानता पर चर्चा के लिए उत्प्रेरक के रूप में देखती हैं तथा असमानता के लिए इसे रामबाण मानती हैं, इसे आधुनिकता की कुंजी भी कहती है, लेकिन वह वर्तमान में इसकी अर्थपूर्णता पर ही सवाल उठाते हुए कहती हैं कि वैश्विक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय संगठन, गैर सरकारी संगठन और मानवाधिकार कार्यकर्ता सभी जब राज्य-केंद्रित कानूनी एकरूपता के दृष्टिकोण से हटकर 'राज्य की पहुँच से परे मानक आदेशों को स्वीकार करने'7 की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, तब भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 क्रियान्वयन की प्रासंगिकता ही खो चुका है। टेंज़ा के मुताबिक, राज्य केंद्रित कानूनी रूढ़िवादिता की बजाय लोगों ने मानकात्मक आदेशों को मानना शुरू कर दिया है, जो कि राज्य की पहुँच से परे होते हैं और यह प्रारूप में परिवर्तन खासकर विकासशील राष्ट्रों में जिनमें एशिया और अफ्रीका है, में देखा गया है। जहां 80% लोग इस तरह के अनौपचारिक और गैर राज्य विधिक व्यवस्थाओं में विश्वास करते हैं। वे मानती हैं कि 'सर्वोच्च न्यायालय आलंकारिक रूप से यूसीसी की पक्ष की बात करता है'8, निर्णयों की विविधता में सर्वोच्च न्यायालय अब विधायकों से कॉमन कोड प्रस्तावित करने के लिए इसलिए कहता है ताकि आधुनिकता और राष्ट्रीय एकता लाई जा सके, लेकिन इसमें अब लैंगिक संस्था का मुद्दा नहीं रहा है. भारत में उच्च एवं उच्चतम न्यायालय 1985 के बाद, जिसमें उसने यूसीसी के लिए चेताया था, अब पर्सनल लॉ को पुनः निर्वाचित करते समय प्रकरण की प्रकृति देखकर ही निर्णय कर रहा है. भारतीय विधि आयोग द्वारा 2018 में प्रस्तुत परामर्श पत्र के अनुसार यह 'राष्ट्र की सद्भावना के प्रतिकूल' तथा "न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है"9, आयोग के अनुसार "भिन्नता का अस्तित्व भेदभाव नहीं बल्कि एक मजबूत लोकतंत्र का संकेत है।"10

भारतीय परिवेश में विशेषज्ञों की समान नागरिक संहिता को लेकर मतों की भिन्नता के सन्दर्भ में विश्व परिदृश्य में इसके विकास एवं क्रियान्वयन का सिंहावलोकन करना समीचीन होगा. फ्रांस में आप्रवासन का एक लंबा इतिहास रहा है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न अफ्रीकी, एशियाई और यूरोपीय पृष्ठभूमि के लोगों के साथ एक बहुसांस्कृतिक समाज का निर्माण हुआ है। वैश्विक परिदृश्य में समान नागरिक सहिंता का सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण भी फ़्रांस में दृष्टव्य हैं, जिसे "कोड सिविल" के नाम से जाना जाता है, इसे 1804 में नेपोलियन बोनापार्ट के द्वारा स्थापित किया गया था। संभवतया लोकतान्त्रिक रूप से प्रौढ़ हो चुके भारत में वैविध्यपूर्ण जटिलताएँ संभवतः इतनी दुरूह नहीं हैं, जितनी तत्कालीन फ़्रांसिसी स्थितियाँ थी, जिसमें सत्ता को परम्परावादी समाजवादियों, पादरियों और अभिभावकों के कोड के द्वारा लाए गए बदलावों का विरोध का सामना करना पड़ा। इस बदलाव से इन वर्गों को प्रभाव और सत्ता के नुक़सान का ख़तरा महसूस हुआ। फ्रांस की जनसांख्यिकी भी दर्शाती है कि वह एक विविधता वाला राष्ट्र रहा है, जिसमें विभिन्न स्थानीय रीति-रिवाज़ और परंपराएँ थीं, यद्यपि 19 वीं सदी के लगभग उतरार्द्ध से फ्रांस ने अपनी जनगणना में धार्मिक या जातीय डेटा एकत्र नहीं किया है, तथापि प्रारंभिक मध्य युग के बाद से फ़्रांस में रोमन कैथोलिक धर्म के मतानुयायियों का आधिक्य रहा है, 2001 में फ्रांसीसी कैथोलिक पत्रिका ला क्रॉइक्स के लिए किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार फ़्रांस में 69% रोमन कैथोलिक, 22% अज्ञेयवादी या नास्तिक, 2% प्रोटेस्टेंट (कैल्विनिस्ट, लूथरन, एंग्लिकन और इवेंजेलिकल), और 7% अन्य धर्मों के लोग निवास करते हैं11, वहीं सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक के 2015 के अनुमान के अनुसार फ़्रांस में रोमन कैथोलिक ईसाई 63-66%, मुस्लिम 7-9%, यहूदी 0.5-0.75%, बौद्ध 0.5-0.75%, अन्य 0.5-1.0%, अज्ञेयवादी या नास्तिक 23-28% हैं।12 इससे फ़्रांसिसी विविधता का अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है वहाँ एक समान राष्ट्रीय कानूनी प्रणाली की आवश्यकता तो थी, पर यह स्वयं एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि देशभर के विभिन्न क्षेत्रों की विशेषताओं और चिंताओं का ध्यान रखना जरुरी था। नेपोलियन के समय तक, फ्रांस में प्रथागत, सामंती, शाही, क्रांतिकारी, चर्च और रोमन कानूनों का भ्रम मौजूद था। विभिन्न कानूनी प्रणालियाँ देश के विभिन्न भागों को नियंत्रित करती थीं।

फ्रांसीसी लेखक वोल्टेयर ने एक बार शिकायत की थी कि फ्रांस भर में यात्रा करने वाले व्यक्ति को उतनी ही बार कानून बदलना होगा जितनी बार वह घोड़े बदलता है।13 नेपोलियनिक कोड ने समानता को लागू किया, जिसमें कानून के सामने सभी को बराबरी देने और निजी संपत्ति की सुरक्षा को संरक्षित किया गया। चुनौतियों और विरोध के बावजूद, नेपोलियन ने कोड सिविल को लागू करने में परिश्रम किया। कोड ने विश्वभर में कई देशों की कानूनी प्रणालियों पर प्रभाव डाला और आधुनिक नागरिक कानून के विकास में एक आधारशिला के रूप में माना जाता है। कोड सिविल को लागू करने में आई चुनौतियाँ नेपोलियन के नागरिक कानूनी सुधारों के प्रति उसकी उत्साहभरी प्रवृत्ति को प्रकट करती हैं। 21 मार्च, 1804 को, बोनापार्ट, प्रथम कौंसल, ने नागरिक कानूनों को "फ्रांसीसी नागरिक संहिता" में समेकित करने पर सेंट हेलेना में कहा था कि "Ma vraie gloire, ce n'est pas d'avoir gagné quarante batailles (...). Ce que rien n'effacera, ce qui vivra éternellement, c'est mon Code civil." 14 (मेरी असली महिमा चालीस लड़ाइयाँ जीतना नहीं है, जिसे कोई चीज नहीं मिटा सकती, जो हमेशा जीवित रहेगी, वह मेरी नागरिक संहिता है)। इस नागरिक संहिता में 36 कानून और 2,281 अनुच्छेद हैं, जो व्यक्तियों, वस्तुओं और संपत्ति के लिए समर्पित तीन पुस्तकों में व्यवस्थित हैं, इन्हें 1804 के कानून द्वारा समूहीकृत और प्रख्यापित किया गया। सभी पुराने कानून - रोमन कानून, अध्यादेश, सामान्य या स्थानीय रीति-रिवाज, क़ानून, विनियम - निरस्त कर दिए गए। "इस कानून ने नेपोलियन और वेटिकन के बीच 1801 के समझौते को समाप्त कर दिया, कैथोलिक चर्च को विस्थापित कर दिया और धार्मिक मामलों में राज्य की तटस्थता की घोषणा की।"15 इस नागरिक संहिता के तहत विवाह, तलाक, संपत्ति के अधिकार और अन्य व्यक्तिगत मामलों में धार्मिक भेदभाव से मुक्ति दी, जिससे समाज में सामाजिक एकता और समानता को प्रोत्साहन मिला। फ्रांस को एक मजबूत आधुनिक राष्ट्र में एकीकृत करने के लिए दृढ़ संकल्पित, नेपोलियन ने लिखित कानूनों के एक सेट पर जोर दिया जो सभी पर लागू होता था। नेपोलियन युग के दौरान फ्रांस द्वारा सामान्य नागरिक संहिता को अपनाने से कानूनी निश्चितता, सामाजिक एकजुटता और राष्ट्रीय पहचान को बढ़ावा देने में योगदान मिला। उसने कानूनों की एक संहिता तैयार करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया। वह चाहता था कि यह संहिता स्पष्ट, तार्किक और सभी नागरिकों द्वारा आसानी से समझी जाने वाली हो। नागरिक संहिता के लेखकों ने अतीत और क्रांति के बीच समझौता किया और कानून के समक्ष सभी नागरिकों की समानता के पक्ष में सामंती और शाही विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया। कोड नेपोलियन ने संयुक्त राज्य अमेरिका को भी प्रभावित किया, जो सामान्य कानून की परंपराओं में डूबा हुआ देश है। 1808 में, राष्ट्रपति थॉमस जेफरसन द्वारा नेपोलियन से लुइसियाना खरीदने के तुरंत बाद, नए क्षेत्र में अमेरिकी सांसदों ने बड़े पैमाने पर नेपोलियन के नागरिक संहिता से लिए गए कानूनों की एक संहिता लिखी। यह क्षेत्रीय कोड आज भी लुइसियाना राज्य कानून की नींव के रूप में बना हुआ है।

इटली में भिन्न धार्मिक संबद्धता के साथ एक समान नागरिक संहिता सभी नागरिकों पर लागू होती है । ग्रीस में भीं नागरिक संहिता 23 फरवरी 1946 को लागू हुई और समय-समय पर इसमें सुधार किया गया, उदाहरण के लिए वर्ष 1982-1983 में पारिवारिक कानून में महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए, हालांकि वहाँ कुछ धार्मिक मुद्दे धार्मिक अदालतों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। 1867 की पुर्तगाली नागरिक संहिता, जिसे "कोडिगो सिविल पोर्टुगुएस डी 1867" के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्त्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज था जो 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान पुर्तगाल में नागरिक मामलों को नियंत्रित करता था। यह पुर्तगाल के राजा लुइस प्रथम के शासनकाल के दौरान अधिनियमित किया गया था और 1966 में यह काफी हद तक संशोधित और नए पुर्तगाली नागरिक संहिता द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने तक लागू रहा। 1867 के नागरिक संहिता में व्यक्तिगत अधिकार, संपत्ति, अनुबंध, पारिवारिक कानून और विरासत सहित नागरिक मामलों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल थी। इसने उस समय की अन्य यूरोपीय कानूनी प्रणालियों, विशेष रूप से नेपोलियन कोड और जर्मन नागरिक संहिता (बर्गरलिच गेसेट्ज़बच) से प्रेरणा ली। 1867 की पुर्तगाली नागरिक संहिता को 18 नवंबर, 1869 के एक शाही आदेश द्वारा गोवा, दमन और दीव16 तक विस्तृत किया गया था, जिसमें घोषणा की गई थी कि यह संहिता स्थानीय उपयोग और रीति-रिवाजों के अधीन मूल निवासियों पर लागू होगी "जहाँ तक वे नैतिकता", "सार्वजनिक व्यवस्था” के साथ असंगत नहीं हैं। प्रथागत कानून के तीन स्थानीय कोडों को बाद के वर्षों में तदनुसार संशोधित किया गया। 1910 में, पुर्तगाली संसद ने दो नागरिक विवाह और तलाक डिक्री और 1946 में कैथोलिकों के लिए एक विहित विवाह डिक्री अधिनियमित की। ये सभी भी गोवा, दमन और दीव तक विस्तृत थे।17 तुर्की ने भी 1926 में इस्लामी शरिया कानून की जगह एक नागरिक संहिता अपनाई ।

उपरोक्त विश्लेषण की समावेशिता को समृद्ध करने के लिए यूरोप के विकसित राष्ट्रों से बाहर निकल अफ़्रीकी महाद्वीप के ट्यूनीशिया का अवलोकन किया जा सकता है, जहाँ विश्व बैंक के डेटा के अनुसार 2021 में जनसंख्या लगभग 1.18 करोड़ थी। इसकी जनसंख्या वृद्धि दर दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित देशों की तुलना में कम है, जिसका अनुमानित कारण आर्थिक स्थिरता है। ट्यूनीशिया की जनसंख्या की संरचना अधिकांशतः शहरी है। इसमें 99% से अधिक जनसंख्या इस्लाम धर्म की अनुयायी है। इस्लाम इसका प्रमुख धर्म है और लोग इस्लामी संस्कृति और धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। 1% से कम जनसंख्या के रूप में हिंदू, यहूदी, ख्रिस्ती और अन्य धर्मों के लोग हैं। उक्त तथ्यों के बावजूद भी ट्यूनीशिया ने 1956 में पर्सनल स्टेटस कॉड लागू किया, जिसे पारिवारिक मामलों को नियंत्रित करने वाला एक प्रगतिशील और आधुनिक कानून माना जाता है। इसके मुख्य विधि विधान में - महिलाओं को अभिभावकों की स्वीकृति की आवश्यकता के बिना अपने पति का चयन करने का अधिकार, पति और पत्नी दोनों को तलाक के लिए शुरुआत करने का अधिकार, विरासत के कानून में बेटियों को लड़कों के समान विरासत का अधिकार महत्त्वपूर्ण है, जो पारंपरिक इस्लामी विरासत विधि के विपरीत था। कोड ने बहुविवाह को भी प्रतिबंधित किया । इसी कारण ट्यूनीशियाई कोड अरब जगत में एक प्रगतिवादी एवं उन्नतिकारी कदम था, जिसने एक इस्लामी राष्ट्र में लैंगिक समानता और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहित करने के लिए उच्च मानक स्थापित किया। इस्लामी सिद्धांतों के साथ समन्वय स्थापित करके मुस्लिम बहुसंख्यक देशों के लिए ट्यूनिशिया एक मॉडल बन गया।

चूँकि भारत एक बहुसांस्कृतिक राष्ट्र है अतः ऐसे राष्ट्र में पूर्ण समान नागरिक संहिता का तात्पर्य एक कानूनी प्रणाली से है जिसमें सभी नागरिक, उनकी सांस्कृतिक या धार्मिक पृष्ठभूमि की परवाह किए बिना, नागरिक कानूनों और विनियमों के समान सेट के अधीन हो । भारत सरकार ने भी अपने चुनाव पूर्व के एजेंडा में पूर्ण समान नागरिक संहिता का उल्लेख न कर प्रचलित परम्पराओं को पूर्ण सम्मान देते हुए समान सहिंता की बात की है, अतः विमर्श केवल पर्सनल लॉज़ से जनित समस्याओं के निराकरण हेतु विधिक समानता स्थापित करने का है. जब समान नागरिक संहिता लागू करने की बात आती है तो बहुसांस्कृतिक आबादी वाले देशों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि विभिन्न सांस्कृतिक या धार्मिक समूहों के अलग-अलग मानदंड, रीति-रिवाज और परंपराएँ हो सकती हैं। इनमें से कुछ रीति-रिवाज एकीकृत नागरिक संहिता के सिद्धांतों के विपरीत हो सकते हैं। परिणामस्वरूप, सामान्य नागरिक संहिता को लागू करना एक संवेदनशील और जटिल प्रक्रिया हो सकती है, जिस पर विभिन्न हितधारकों के साथ सावधानीपूर्वक विचार, संवाद और परामर्श की आवश्यकता होती है। भारत जैसे राष्ट्र में भी सरकार को यह सुनिश्चित करते हुए कि सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार और न्याय के सिद्धांत सुरक्षित हैं, अपनी आबादी की विविधता का सम्मान करने के बीच संहिताकरण में अभिवृद्धि करते हुए उचित संतुलन बनाने की जरूरत है।

उक्त राष्ट्रों सहित सामान नागरिक संहिता के क्रियान्वयन करने वाले सांस्कृतिक विविधता वाले राष्ट्रों के ऐतिहासिक अनुभव से भारत में सामान्य सिविल कोड के कार्यान्वयन की संभावित चुनौतियों का आकलन एवं समाधान किया जा सकता है। ऐसा प्रयास विभिन्न पर्सनल लॉज़ के कारण उत्पन्न होने वाली विसंगतियों और खामियों को दूर करके नागरिक और आपराधिक कानूनों में सामंजस्य स्थापित कर सकता है, साथ ही यह कानून को आम लोगों के लिए अधिक सुलभ और समझने योग्य बनाने में सहायता कर सकता है। समान नागरिक संहिता का मसौदा सांस्कृतिक साम्राज्यवाद नहीं अपितु सामाजिक आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए लैंगिक न्याय को सामाजिक स्वीकृति के साथ सुनिश्चित करने का एक समायोजनशील प्रयास है, जो सांस्कृतिक विविधता को सावधानीपूर्वक स्वीकार करते हुए नागरिक कानूनों पर एकरूपता की सहमति चाहता है।

सन्दर्भ :
  1. https://www.constitutionofindia.net/articles/article-44-uniform-civil-code-for-the-citizens/
  2. उपर्युक्त
  3. "uniform, of one form, character, or kind; having, maintaining, occurring in or under, the same form always; that is or remains the same in different place", Oxford Dictionary website, https://www.oed.com/search/dictionary से उद्धृत
  4. "civil, adj., n., & adv.-Of warfare, conflict, etc.: occurring within a society or community; taking place between inhabitants of the same country or state, or between the", Oxford Dictionary website, https://www.oed.com/search/dictionary से उद्धृत
  5. "code -Originally: (a collection of regulations setting out) a system of military, naval, or maritime signals"- Oxford Dictionary website, https://www.oed.com/search/dictionary से उद्धृत
  6. https://dictionary.law.com/Default.aspx?searched=unifrom%20civil%20code&type=1
  7. Tanja Herklotz- 'Dead Letters? The Uniform Civil Code through the Eyes of the Indian Women's Movement and the Indian Supreme Court' ,Verfassung und Recht in Übersee / Law and Politics in Africa, Asia and Latin America, Vol. 49, No. 2, Special Issue: Fundamental Rights and Directive Principles: The (Un) fulfilled Promises of the Indian Constitution (2016), pp. 148-174 .
  8. उपर्युक्त
  9. ’' While diversity of Indian culture can and should be celebrated, .....uniform civil code which is neither necessary nor desirable at this stage. Most countries are now moving towards recognition of difference, and the mere existence of difference does not imply discrimination, but is indicative of a robust democracy." पैरा 1.15, पेज -7, Consultation Paper on Reform of Family Law, 31 August 2018, Law Commission of India, https://archive.pib.gov.in/documents/rlink/2018/aug/p201883101.pdf
  10. उपर्युक्त
  11. https://web.archive.org/web/20081116013632/http://www.csa-fr.com/dataset/data2001/catholiques.pdf, Institut CSA & La Croix. 24 December 2001. Archived from the original (PDF) on 10 October 2009.
  12. "The World Factbook — Central Intelligence Agency". Cia.gov. Retrieved 1 September 2017.
  13. https://www.crf-usa.org/bill-of-rights-in-action/bria-15-2-a-the-code-napoleon
  14. https://www.gouvernement.fr/partage/9056-naissance-du-code-civil-des-francais
  15. https://www.worldhistory.org/article/2094/frances-1905-law-of-separation-of-church-and-state/
  16. "पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 गोवा, दमन और दीव प्रशासन अधिनियम, 1962 की धारा 5(1) के आधार पर बची हुई है", Portuguese Civil Code, 1867 Official Translation with notes, प्रथम संस्करण अगस्त 2018 © गोवा सरकार, गोवा सरकार द्वारा प्रकाशित
  17. https://indianexpress.com/article/opinion/columns/portuguese-civil-code-1867-colonial-burden-on-goa-8085238/

मनोज कुमार भारी
सह आचार्य, राजनीति विज्ञान, आयुक्तालय कॉलेज शिक्षा, जयपुर
manojkumarbhari@gmail.com 99285-27811

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-53, जुलाई-सितम्बर, 2024 UGC Care Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन  चन्द्रदीप सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

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