शोध आलेख : भारत में इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग का मनो-सामाजिक प्रभाव / मीनाक्षी पाण्डेय एवं नेहा पाण्डेय

भारत में इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग का मनो-सामाजिक प्रभाव

- मीनाक्षी पाण्डेय एवं नेहा पाण्डेय


शोध सार : शोधकर्ता ने भारत में साइबरस्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग के पीड़ितों के लिए मनो-सामाजिक परिणामों का पता लगाने के लिए एक बहु-पद्धति अध्ययन किया, जिसमें गूगल फॉर्म के माध्यम से ऑनलाइन सर्वेक्षण (N  384) एव विशेषज्ञों और पीड़ितों के साक्षात्कार (N  25) शामिल थे। 384 प्रतिभागियों में से, जिन्होंने स्वयं को इन साइबर अपराधों का शिकार बताया और नकारात्मक परिणामों का सामना किया (N 158) को प्रश्नावली के विशेष खंड को पूरा करने के लिए कहा गया जो इन साइबर अपराधों के मनो-सामाजिक परिणामों से संबंधित थे। 158 उत्तरदाताओं में से 10 उत्तरदाताओं ने अपनी घटनाओं और उसके परिणामों को विस्तार से साझा किया और 15 घटनाएँ विशेषज्ञों और पीड़ितों के साक्षात्कार के माध्यम से एकत्र की गईं। कुल मिलाकर, निष्कर्ष इन दो साइबर अपराधों की 25 वास्तविक घटनाओं पर आधारित थे। अध्ययन में खुलासा हुआ कि पीड़ितों ने इन साइबर अपराधों के कारण कई मनो-सामाजिक नकारात्मक प्रभावों का अनुभव किया, जैसे कि उन्हें गुस्सा आना, तनाव होना, डर लगना, चिंता होना, बुरे सपने आना, दैनिक दिनचर्या बदलना, अपनी पढ़ाई और काम पर ध्यान केंद्रित करने में असमर्थता, दोस्तों को खोना शामिल हैं कुछ मामलों में पीड़ितों ने आत्महत्या का प्रयास किया। अध्ययन के माध्यम से यह सुझाव दिया गया है कि इन समस्याओं से निपटने के लिए इन साइबर अपराधों के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।

बीज शब्द : साइबरस्टॉकिंग, इंटरनेट ट्रोलिंग, मनोवैज्ञानिक परिणाम, सामाजिक परिणाम, साइबर अपराध, गुस्सा, तनाव, डर, आत्महत्या।

मूल आलेख :

परिचय 

साइबरस्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग संचार से जुड़े नए साइबर अपराध हैं, जो व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं। भारत में इन अपराधों के प्रति जागरूकता कम है, इसलिए इनके समाधान पर अध्ययन आवश्यक है। ‘इंटरनेट ट्रोलिंग’ सोशल मीडिया पर अपमानजनक टिप्पणियों से व्यक्ति के सामाजिक और आर्थिक जीवन को बाधित करती है। शुरुआत में ट्रोलिंग मानसिक संतुष्टि के लिए की जाती है, लेकिन कभी-कभी यह गंभीर रूप से हानिकारक हो सकती है। अक्सर पीड़ित को अपराधी माना जाता है, जैसे अमृता राय को दिग्विजय सिंह से शादी करने पर गाली-गलौज का सामना करना पड़ा।

सामाजिक छवि को अन्य नुक़सान के डर से पीड़ित और उनके परिवार अक्सर घटनाओं की रिपोर्ट नहीं करते, और पुलिस भी उनका सहयोग नहीं करती। श्रीमती सेठ और श्रीमती कृष्णन के मामलों में पुलिस ने शिकायत दर्ज करने में रुचि नहीं दिखाई। बीबीसी रिपोर्ट के अनुसार, श्रीमती कृष्णन ने पुलिस आयुक्त को धमकियों के सबूत भेजे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने कहा, ‘मेरे उत्पीड़कों के खिलाफ कुछ नहीं हुआ।’ अभिनेत्री श्रुति सेठ ने भी पुलिस से मदद माँगी, लेकिन उन्हें ऑनलाइन दुर्व्यवहार के मामलों में सतर्क रहने और घर पर रहने की सलाह दी गई, क्योंकि अपराधी को पकड़ना मुश्किल बताया गया।

क़ानूनी विशेषज्ञ हलदर कहती हैं कि जब उन्होंने महिला पीड़ितों को ट्रोलिंग के मामलों की रिपोर्ट करने का सुझाव दिया, तो उन्होंने रिपोर्ट करने से इनकार कर दिया। पीड़ितों का मानना था कि यह कोई गंभीर मुद्दा नहीं है, और वे इसे अदालत के बाहर सुलझाना चाहती थीं। आमतौर पर, वे अश्लील सामग्री हटाने को प्राथमिकता देती हैं। इसी तरह, अपार गुप्ता ने कहा कि 'साइबर अपराध से संबंधित शिकायतों को दर्ज करने में पुलिस को अनिच्छा होती है क्योंकि इससे उनका बोझ बढ़ जाता है'।

भारत में इन समस्याओं से निपटने के लिए क़ानूनी ढांचा अपर्याप्त है। देबराती हलदर और के. जयशंकर के अनुसार, 'इंटरनेट ट्रोलिंग' के मामलों में कविता कृष्णन, घोष, और बरखा दत्त के खिलाफ कोई ठोस आदेश नहीं पारित हुआ, और पुलिस ने भी संतोषजनक कार्रवाई नहीं की। नारीवाद या राजनीतिक टिप्पणियों के कारण उन्हें ट्रोल किया गया। हलदर ने यह भी कहा कि वकील पीड़ितों को मामले अदालत के बाहर सुलझाने की सलाह देते हैं।

भारतीय क़ानूनी प्रणाली 'इंटरनेट ट्रोलिंग' के पीड़ितों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं है। परिवार, समाज और पुलिस भी पीड़ितों का समर्थन नहीं करते, जिससे इसे संभालना कठिन हो जाता है। इस कारण पीड़ित गंभीर मानसिक दबाव का सामना करते हैं, जो उच्च रक्तचाप, मोटापा, नींद की समस्याओं जैसे स्वास्थ्य मुद्दों को जन्म देता है। पारंपरिक पितृ-सत्तात्मक समाजों में, विशेषकर महिलाओं और किशोरों के लिए ट्रोलिंग अधिक गंभीर हो सकती है।

साहित्य समीक्षा

पीड़ितों पर इंटरनेट ट्रोलिंग का प्रभाव- दिसंबर 2012 में, 16 साल की एक किशोरी, फुटबॉल खिलाड़ी, जेसिका लेनी ने फ्लोरिडा के हडसन में अपने घर पर आत्महत्या कर ली, जब सोशल नेटवर्किंग पर उपयोगकर्ताओं ने उसकी दिखावट और प्रेम जीवन पर टिप्पणी की। ट्रोल्स ने उसे 'मोटी', 'वेश्या' आदि कहा। यहाँ तक कि एक उपयोगकर्ता ने उससे पूछा 'क्या तुम पहले ही खुद को मार सकती हो?' ।

2013 में, हन्ना स्मिथ, 14 साल की लड़की, ने यूके में Ask.fm पर ट्रोल किए जाने के बाद आत्महत्या कर ली। उसे ‘गाय’ और ‘मोटी वेश्या’ कहकर ट्रोल किया गया था, ‘खैर, तुम एक वेश्या हो, क्या तुमने कभी अपने आप को देखा है, कभी मेकअप ठीक से कैसे किया जाता है, इसके बारे में सुना है, तुम लगभग 10 साल की दिखती हो’, ‘तुम बदसूरत हो, जाओ मरो, हर कोई खुश होगा’, ‘हम सभी के लिए एक एहसान करो और खुद को मार डालो।’ उस समय उसने बहुत साहसपूर्वक जवाब दिया था। उसने उन्हें जवाब दिया, ‘हाँ, मैं बदसूरत हो सकती हूँ, लेकिन लोगों से ‘मरो’ कहने के लिए आपके पास स्पष्ट रूप से बदसूरत व्यक्तित्व है!’ लेकिन उसके बाद वह दबाव को सहन नहीं कर पाई और उसने आत्महत्या कर।

एक टीवी प्रस्तुतकर्ता, शार्लेट डॉसन, 47, ने सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग के कारण सिडनी में अपने घर पर आत्महत्या कर ली। इससे पहले 2012 में, उन्होंने लगातार ट्रोलिंग के बाद पहली बार आत्महत्या करने का प्रयास किया था। आत्महत्या करने से पहले उन्होंने ट्रोल्स को लक्षित करते हुए ट्वीट किया, जो उनके दर्द को व्यक्त करता है, ‘तुम जीत गए x. आशा है कि इससे दुख समाप्त होगा’, साथ ही उनके हाथों में गोलियों की तस्वीर भी थी। उस समय उन्होंने कहा था, ‘इसने उस असहायता की भावना को ट्रिगर कर दिया जब ट्रोल्स ने मुझे पकड़ लिया। उन्होंने मुझे हरा दिया और वे जीत गए। मुझे कभी इतनी भयंकर मौत की धमकियां नहीं मिलीं’। इस तरह, यह देखा जा सकता है कि कुछ मामलों में ट्रोलिंग कितनी गंभीर हो सकती है। मानसिक दबाव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इससे उच्च रक्तचाप, मोटापा, अत्यधिक भोजन करना, नींद संबंधी विकार आदि होते हैं। इसका व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य पर भारी प्रभाव पड़ता है।

इसी प्रकार साइबरस्टॉकिंग पीड़ित के जीवन के कई पहलुओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यह चिंता और भय पैदा करता है और कई पीड़ित साइबरस्पेस में पीछा किए जाने के डर से अपनी ऑनलाइन और ऑफलाइन गतिविधियों को बदल देते हैं।,

एक अध्ययन, में पाया गया कि कुल उत्तरदाताओं में से 59% ने अपने जीवन के किसी न किसी अवधि में किसी के द्वारा पीछा किया जाना और/ या परेशान किया जाना और/ या अनवरत रूप से तंग किया जाना अनुभव किया। शोधकर्ताओं ने साइबरस्टॉकिंग और भौतिक स्टॉकिंग के बीच एक छोटे लेकिन सुसंगत संबंध का पता लगाया।

मैपल एट अल. (2011) के एक अध्ययन के अनुसार, साइबरस्टॉकिंग पीड़ित को मानसिक और आर्थिक रूप से नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यह उनके काम, उनके रिश्तों और उनके सामाजिक संबंधों को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। ECHO-2011 (Electronic Communication Harassment Observation) प्रोजेक्ट ने पाया कि जो घटनाएँ साइबर वर्ल्ड में शुरू हुई थीं, वे बाद में भौतिक दुनिया में स्थानांतरित हो गईं। इस अध्ययन के अनुसार, साइबरस्टॉकिंग पीड़ितों की दैनिक दिनचर्या, सामाजिक गतिविधियों और कार्य गतिविधियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जिससे वित्तीय हानि और भय, तनाव आदि में वृद्धि होती है। ECHO अध्ययन ने यह भी पाया कि सहायता और समर्थन की कमी के कारण अधिकांश पीड़ित निराशा महसूस करते हैं।,.

इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग के कारण पीड़ित कई शारीरिक और भावनात्मक परिणामों का सामना करते हैं जैसे- पेट की समस्या, नींद के विकार, गुस्सा, डर, भ्रम, तनाव, चिंता और अवसाद। ये प्रभाव खराब मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की ओर ले जाते हैं। कुछ मामलों में, इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग द्वारा उत्पन्न अत्यधिक भावनात्मक तनाव और शारीरिक आघात के कारण पीड़ितों ने आत्महत्या कर ली।

साहित्य समीक्षा से स्पष्ट है कि इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग संचार से जुड़े हैं और इंटरनेट पर होते हैं। अधिकतर अध्ययन इन पर अलग-अलग किए गए हैं, जिससे शोधकर्ता को भारतीय संदर्भ में इनके मनो-सामाजिक परिणामों का संयुक्त रूप से अध्ययन करने की प्रेरणा मिली। इस शोध का उद्देश्य भारत में पीड़ितों के लिए इन अपराधों के मनो-सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण करना और जागरूकता बढ़ाने के लिए एक संचार रणनीति विकसित करना था। यह अध्ययन केवल उपलब्ध डेटा पर आधारित था, क्योंकि कई घटनाएं रिपोर्ट नहीं होतीं और पीड़ित खुलकर अपनी कहानियाँ साझा नहीं करते।

अध्ययन के उद्देश्य-

इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य साइबर स्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग के प्रभावों का व्यापक विश्लेषण करना है। निम्नलिखित अनुसंधान उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए अध्ययन को संरचित किया गया है:

  • साइबर स्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग के कारण होने वाले मानसिक तनाव, चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की पहचान और विश्लेषण करना।

  • साइबर स्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग के कारण पीड़ित के सामाजिक जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना, जिसमें सामाजिक अलगाव, संबंधों में तनाव, और सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी की कमी शामिल है।

अनुसंधान पद्धति-

अध्ययन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए शोधकर्ता ने बहु-पद्धति अनुसंधान डिजाइन का उपयोग किया, जिसमें प्राथमिक डेटा ऑनलाइन सर्वेक्षण और साक्षात्कारों से प्राप्त किया गया, जबकि द्वितीयक डेटा रिपोर्टों, समाचार पत्रों, शोध पत्रिकाओं और वेब सामग्री से एकत्र किया गया। 384 प्रतिभागियों से ऑनलाइन सर्वेक्षण के माध्यम से डेटा एकत्र किया गया, जिसे सोशल मीडिया और सर्वेक्षण वेबसाइटों के जरिए प्रसारित किया गया। साथ ही, टेलीफोनिक और आमने-सामने साक्षात्कारों के जरिए 8 विशेषज्ञों और 4 पीड़ितों से अर्ध-संरचित साक्षात्कार आयोजित किए गए, जिनमें COVID-19 के कारण अधिकांश साक्षात्कार फोन पर हुए और सहमति से रिकॉर्ड किए गए। सर्वेक्षण डेटा का थीमेटिक विश्लेषण तालिकाओं के माध्यम से किया गया, जबकि साक्षात्कार डेटा को नोट्स के रूप में तैयार कर प्रमुख विषयों में वर्गीकृत किया गया, जिनमें इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग के अर्थ, मामले, पीड़ितों पर मनो-सामाजिक प्रभाव, उपलब्ध समाधान और सिफारिशें शामिल थीं।

नैतिकता- 

शोध प्रश्नावली को एक वेब लिंक के माध्यम से प्रसारित किया गया था। सभी नैतिक, गोपनीयता नीति और निर्देश प्रश्नावली पर स्पष्ट रूप से लिखे गए थे। साक्षात्कार साक्षात्कारकर्ता की सहमति के बाद लिए और रिकॉर्ड किए गए थे।

परिणाम- 

इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग : एक अध्ययन-  यह अध्ययन ऑनलाइन सर्वेक्षण (n=384) और गहन साक्षात्कारों के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें मनो-सामाजिक परिणामों का पता लगाने के लिए वास्तविक घटनाओं (n=25) को एकत्रित किया गया है। यह शोध ‘इंटरनेट ट्रोलिंग’ के मामलों को दर्शाता है, जो आजकल सामाजिक मीडिया पर एक गंभीर समस्या बन गई है।

अध्ययन के प्रमुख मामले-

संदीप दुबे, जो अंधेरी कोर्ट बार एसोसिएशन, मुंबई में एक आपराधिक वकील हैं, ने रविंद्र जड़ेजा से संबंधित ‘इंटरनेट ट्रोलिंग’ का एक मामला साझा किया। जड़ेजा ने 12 अप्रैल, 2020 को अपने ट्विटर हैंडल पर #Rajputboy हैशटैग के साथ एक वीडियो साझा किया, जिसमें वह तलवार चला रहे थे। इस वीडियो को लेकर जड़ेजा को बेरहमी से ट्रोल किया गया। ट्रोलर्स ने उनकी जाति और पेशे को निशाना बनाते हुए कई अपमानजनक टिप्पणियाँ की, जैसे “राजपूतों ने कितनी लड़ाइयाँ जीतीं?” और “यह मूर्ख एक क्रिकेटर है, भारतीय टीम के लिए खेलता है, उम्मीद है कि अपनी जाति के लिए नहीं...” इस मामले में दिलीप मंडल ने भी टिप्पणी की, जिससे ट्रोलिंग की एक लंबी शृंखला शुरू हुई, जिसमें मंडल को भी ट्रोल किया गया। यह मामला न केवल व्यक्तिगत अपमान का था, बल्कि इसने ट्रोलिंग के एक जटिल नेटवर्क का निर्माण किया, जहाँ एक व्यक्ति की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया में दूसरे व्यक्ति को भी निशाना बनाया गया। 

सुरेश शुक्ला ने एक विवाहित महिला की घटना साझा की, जिसमें उसने एक राजनीतिक पोस्ट साझा की थी। एक व्यक्ति ने उसकी तस्वीर को मोर्फ करके उसे एक पोर्न साइट पर पोस्ट किया और बाद में उस पोस्ट का यूआरएल उसे भेजा। वह महिला अपमानजनक भाषा और कठोर व्यवहार का सामना करते हुए साहसी बनी रही, लेकिन इस घटना के बाद वह डरी हुई और मदद की तलाश करने लगी। यह मामला तीन स्तरों में वर्गीकृत किया गया: स्तर 1 (ट्रोलिंग), स्तर 2 (स्टॉकिंग), और स्तर 3 (अश्लीलता)। यह घटना स्पष्ट रूप से बताती है कि कैसे एक साधारण ट्रोलिंग की घटना कैसे अधिक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों की ओर बढ़ सकती है।

पारिवारिक तनाव और साइबरस्टॉकिंग- 

शुक्ला ने एक और घटना साझा की, जिसमें एक व्यक्ति को उसकी पत्नी के संपर्क नंबर को एक व्हाट्सएप ग्रुप में साझा करने के लिए ट्रोल किया गया, जिसके कारण उसे अजनबियों से कई कॉलें आईं। इससे पति-पत्नी के रिश्ते में तनाव आया और अंततः पति ने आत्महत्या का प्रयास किया। यह घटना यह दर्शाती है कि साइबरस्टॉकिंग न केवल मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है, बल्कि यह व्यक्तिगत संबंधों को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। एक अन्य मामले में, एक सुप्रीम कोर्ट के वकील ने बताया कि उनके व्हाट्सएप संदेशों को बिना उनकी सहमति के कोई और पढ़ रहा था। बाद में पता चला कि उनके अपने परिवार के सदस्य ने उनके व्हाट्सएप कोड को स्कैन किया था और उनके संदेशों को पढ़ रहा था। यह घटना यह दर्शाती है कि साइबरस्टॉकिंग केवल अज्ञात व्यक्तियों द्वारा नहीं की जाती, बल्कि निकटता से जुड़े लोग भी इसे कर सकते हैं।

छात्राओं का अनुभव और शिक्षा पर प्रभाव-

वकील निलेश शुक्ला ने एक छात्रा के मामले को साझा किया, जिसमें उसके शिक्षक द्वारा पीछा किया गया। छात्रा ने अपने माता-पिता को अपने अनुभव के बारे में बताया, जिन्होंने शिक्षक के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई। यह मामला इस बात को उजागर करता है कि कैसे शिक्षा के माहौल में भी साइबरस्टॉकिंग और ट्रोलिंग की समस्या हो सकती है। इस छात्रा ने अपनी पढ़ाई में गंभीर गिरावट देखी और अंततः वह स्नातक नहीं बन पाई। यह घटना यह दर्शाती है कि साइबरस्टॉकिंग का दीर्घकालिक प्रभाव हो सकता है, विशेष रूप से युवा महिलाओं पर।

समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण-

  केंद्रीय विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर अरविंद कुमार जोशी ने साझा किया कि कुछ छात्राओं को उनके शिक्षक द्वारा शादी के लिए मजबूर किया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि छात्राओं को डराने और परेशान करने वाले संदेश मिले, लेकिन उन्होंने शिक्षक के ख़िलाफ़ कुछ नहीं किया। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समग्र समाज में भी चिंता का विषय है। छात्राओं की छवि खराब होने, पारिवारिक समर्थन की कमी और क़ानूनी प्रक्रिया के जटिलताओं के डर से वे चुप रहीं।

अन्य घटनाएँ-

एक छात्रा ने अपने अनुभव साझा किया कि उसने व्हाट्सएप ग्रुप चैट में ‘इंटरनेट ट्रोलिंग’ का सामना किया। एक पुरुष साथी ने एक वीडियो साझा किया, जिसमें एक लड़के ने अपनी महिला मित्र को थप्पड़ मारा। इस वीडियो को देखकर उसे ग़ुस्सा आया और उसने ग्रुप चैट में नारीवाद का समर्थन करते हुए अपमानजनक बहस की। यह घटना उसे अविश्वास, अकेलापन और ग़ुस्सा महसूस कराने का कारण बनी। एक पुरुष छात्र ने शादी न करने पर और अपने शारीरिक रूप (जैसे उम्र, बाल झड़ना और मोटापा) पर मजाक़ उड़ाए जाने का अनुभव किया। उसने इस पर मजाक़ में जवाब दिया, लेकिन अंदर से उसे यह पसंद नहीं आया। यह घटना यह बताती है कि ट्रोलिंग न केवल महिलाओं को बल्कि पुरुषों को भी प्रभावित कर सकती है।

सर्वे उत्तरदाताओं द्वारा साझा किए गए मामले (जैसे के तैसे)-

उत्तरदाता 'A': उत्तरदाता ने अपनी कहानी साझा की कि ‘एक लड़का... मेरा स्कूल फ्रेंड... मेरी तस्वीरें मेरी महिला दोस्तों के माध्यम से इकट्ठा कीं... हालांकि मैंने उसे ब्लॉक कर दिया था... उन तस्वीरों का कोलाज बनाया और मेरे जन्मदिन पर फेसबुक पर पोस्ट किया... मुझे शुभकामनाएँ देते हुए और कहा कि वह मेरे प्रति जुनूनी है... मैंने असहाय महसूस किया और मेरे माता-पिता को घटना के बारे में पता चलने के बाद उन्होंने मुझे फिर से अपनी तस्वीर को डीपी रखने से मना कर दिया...’

उत्तरदाता 'B' ने कहा, ‘मैंने एक प्रतियोगिता जीती और रनर अप ने फेसबुक पर मेरी बदनामी की’

उत्तरदाता 'C' के अनुसार, ‘यह पीछा करने का मामला था जिसमें मुझे लगातार एक अजनबी द्वारा संदेश भेजे जा रहे थे... उसकी अनुरोध स्वीकार करने के अनुरोध के साथ...’

उत्तरदाता 'D' ने लिखा, ‘मेरी दोस्त को लड़कियों पर अपने सामाजिक विचार साझा करने के लिए ट्रोल किया गया और एक लड़के ने उसका और मेरा भी अपमान किया।’

उत्तरदाता 'E' ने कहा, 'एक बार एक टिप्पणी में एक मुस्लिम लड़के ने मेरी क़रीबी महिला मित्र को गाली दी, और उसे धमकी दी कि वह देखेगा कि उसके माता-पिता क्या करेंगे।'

उत्तरदाता 'F' ने अनुभव साझा करते हुए कहा, 'एक बार मेरे स्कूल के एक जूनियर ने मेरी तस्वीर अपने अकाउंट में पोस्ट की थी और बहुत ही अश्लील टिप्पणी लिखी थी जो मेरे लिए बहुत शर्मनाक थी।'

उत्तरदाता 'G' ने साझा किया, 'किसी ने मेरी बहन की फर्जी फेसबुक आईडी बनाई और उसकी जानकारी सार्वजनिक रूप से साझा की, जैसे तस्वीरें, बिस्तर पोस्ट आदि।'

उत्तरदाता 'H' ने कहा, 'कोई रैंडम आदमी मेरी दोस्त के डीएम में आकर उससे यौन संबंध की माँग करने लगा और जब उसने इनकार कर दिया तो उसने धमकी दी कि 'उठवा लेंगे'।

उत्तरदाता 'I' ने कहा, 'पीछा करना... लगातार संदेश भेजना... मानसिक उत्पीड़न... बलात्कार की धमकी देना और कई अन्य ऐसे शब्दों का इस्तेमाल अज्ञात लड़कों के समूह द्वारा किया गया।'

उत्तरदाता 'J' ने साझा किया, 'उस व्यक्ति ने मुझे इंगित करते हुए एक सार्वजनिक अश्लील पोस्ट में टैग किया।'


चर्चा

इस अध्ययन ने साबित किया है कि इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग के प्रभाव पीड़ित व्यक्तियों के जीवन पर कितना गहरा असर डाल सकते हैं। इन गतिविधियों से प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की मानसिक स्थिति और सामाजिक जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं। सामाजिक बहस और मानसिक प्रतिस्पर्धा की स्थिति में यह गतिविधियां व्यक्तियों को तनाव और चिंता में डाल सकती हैं।

अध्ययन के आधार पर पाया गया कि साइबरस्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग के द्वारा प्रभावित होने वाले व्यक्तियों की स्थिति विभिन्न रूपों में बदल सकती है। उदाहरण के तौर पर, एक मेडिकल शॉपकीपर को उसके बेटे के कोरोना संक्रमण की बजाय उसकी ट्रोलिंग की गई, जिसके परिणामस्वरूप उसकी सामाजिक बर्बादी हुई, लोगों ने दवाओं की ख़रीददारी बंद कर दी, उसे रैपिड मेंसेजिंग द्वारा बदनाम किया गया, और उसके खिलाफ FIR भी दर्ज की गई। इस प्रकार की स्थिति उस व्यक्ति को मानसिक और सामाजिक रूप से प्रभावित कर सकती है।

एक दूसरे मामले में, एक विद्यार्थिनी जिसने कक्षा 10 में 94% अंक प्राप्त किए थे, कक्षा 12 की प्री-बोर्ड परीक्षा में फेल हो गई और उसके अध्ययन को साइको-सामाजिक दबाव के चलते छोड़ना पड़ा। इससे उसकी आत्मसम्मान और स्वतंत्रता पर भी प्रभाव पड़ा।

इन अन्य मामलों में, कुछ पीड़ितों को शिक्षकों द्वारा विवाह में मजबूर किया गया और उन्हें फोन कॉल्स और संदेशों से परेशान किया गया, लेकिन वे इसके ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं उठा पाए दरअसल छायाचित्र नुक़सान, परिवारी समर्थन की कमी, नुक़सान के डर का संभावना, और लंबी और जटिल क़ानूनी प्रक्रियाओं की वजह से। इन मामलों में पीड़ितों का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ और कई व्यक्तिगत और स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा।

निष्कर्ष : इस प्रकार, साइबरस्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग पीड़ित व्यक्तियों के लिए नकारात्मक मानसिक-सामाजिक परिणाम रखते हैं। ये परिणाम व्यक्तियों के जीवन के अन्य क्षेत्रों पर भी अपना प्रभाव डालते हैं। लोगों के बीच सही सुरक्षा उपायों और समाधानों की जागरूकता की कमी है। क़ानूनी तंत्र और तकनीकी स्तरों में कई दरार हैं। यह अध्ययन साइबरस्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग के मानसिक और सामाजिक परिणामों पर साहित्यिक योगदान प्रदान करता है। हालांकि, आगामी अनुसंधानों द्वारा पीड़ितों के लिए मानसिक और सामाजिक परिणामों के अन्य प्रकारों की पहचान करने के लिए और इंटरनेट ट्रोलिंग और साइबरस्टॉकिंग के पीड़ितों पर दुर्घटनात्मक प्रभावों और दीर्घकालिक सामाजिक प्रभावों की अध्ययन करने की आवश्यकता है। यह अध्ययन क़ानूनी और आईटी क्षेत्रों में एक सामर्थ्यपूर्ण क़ानूनी ढाँचे और सुरक्षा प्रणाली विकसित करने के लिए इन समस्याओं पर ध्यान आकर्षित करने में मदद करता है। अध्ययन ने साझा की गई समस्याओं के बारे में जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता को भी दर्शाया।

सिफ़ारिशें

उपर्युक्त अध्ययन से स्पष्ट होता है कि साइबरस्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग जैसी गतिविधियाँ व्यक्तियों के मानसिक और सामाजिक जीवन पर कितना बुरा असर डाल सकती हैं। इस असमंजस में, कुछ सिफ़ारिशें प्रस्तुत की जाती हैं जो इन समस्याओं को सुलझाने में मदद कर सकती हैं:

  1.  साइबरस्टॉकिंग और इंटरनेट ट्रोलिंग के खिलाफ जनता में जागरूकता फैलानी चाहिए। स्कूलों, कॉलेजों और समुदाय में इन विषयों पर शिक्षण और समझावा देना ज़रूरी है।

  2. पीड़ितों को उनके क़ानूनी अधिकारों के बारे में जागरूक करना आवश्यक है। उन्हें यह भी बताया जाना चाहिए कि किस प्रकार की स्थितियों में वे किसी भी प्रकार के संकेत और भ्रम से कैसे बच सकते हैं।

  3.  संगठनों और व्यक्तिगत उपयोगकर्ताओं को तकनीकी सुरक्षा मानकों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे उनकी निजी और व्यवसायिक जानकारी को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी।

  4.  सरकार और निजी क्षेत्र को साइबर सुरक्षा क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तेजित करना चाहिए। तकनीकी ज्ञान और क़ानूनी जागरूकता को बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम और कोर्सों का आयोजन किया जाना चाहिए।

  5.  पीड़ितों के लिए समर्थन संरचनाओं का विकास करना आवश्यक है ताकि उन्हें इस तरह की स्थितियों का सामना करने में मदद मिल सके। परिवार, मित्र और समुदाय का समर्थन उनकी मानसिक स्थिति में सुधार ला सकता है।

संदर्भ :


मीनाक्षी पाण्डेय
पोस्ट डॉक्टोरल रिसर्च फेलो - आईसीएसएसआर
पत्रकारिता एवं जन-संप्रेषण विभाग,  काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
meenakshipandeybhu@gmail.com

नेहा पाण्डेय
सहायक प्रोफेसर - पत्रकारिता एवं जन-संप्रेषण विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
nehapandey@bhu.ac.in

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-53, जुलाई-सितम्बर, 2024 UGC Care Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन  चन्द्रदीप सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

Post a Comment

और नया पुराने