कैम्पस के किस्से : वर्धा विश्वविद्यालय / कुलदीप समदर्शी

वर्धा विश्वविद्यालय
- कुलदीप समदर्शी


“हर इक सवाल का जवाब मिला इन दीवारों में,
विश्वविद्यालय ने हमें, नए सवाल पूछना सिखाया।”

वर्धा विश्वविद्यालय में एक साल का सफर बहुत ही समृद्ध और शिक्षाप्रद रहा है। यहाँ आकर मैंने बहुत कुछ सीखा है। यहाँ के अध्यापकों और छात्रों के साथ संवाद ने मेरे आत्मविकास को समग्र सोचने-समझने की दिशा दी है। विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान मैं अपने हक-हुकूक, जल, जमीन, जंगल और अधिकारों के लिए लड़ने की अहमियत को समझ पाया। यह जानना जरूरी है कि सिर्फ पाठ्यक्रम की किताबें पढ़ना ही काफी नहीं है। हमें विषय से हटकर भी पढ़ाई करनी चाहिए। क्योंकि हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में विषय के बाहर की किताबों का महत्वपूर्ण योगदान होता है, जिससे सोचने-समझने के नए तरीके सीख पाते हैं। इस दौरान कई उत्कृष्ट साथी मिले, जो अपने-अपने क्षेत्रों में कुशल हैं। उनके साथ समय बिताकर मैंने नया ज्ञान और दृष्टिकोण हासिल किया। विश्वविद्यालयों में आ कर हमें एक-दूसरे की संस्कृति से भी परिचित होने का सौभाग्य प्राप्त होता है। फिर हम अपने जीवन में विविधता के प्रति और संवेदनशील हो जाते हैं। विश्वविद्यालय में हम पढ़ाई के साथ-साथ तमाम पाठ पढ़ते हैं, जो हमारे व्यक्तित्व को निखारने में मदद करता है।

वर्धा विश्वविद्यालय में एम.ए. का एक साल बहुत ही शानदार रहा है। इस दौरान शिक्षा के साथ-साथ जीवन के कई पहलुओं को भी गहराई से समझा, सीखा और जानने का मौक़ा मिला। विश्वविद्यालय का यह सफर न केवल शैक्षणिक ज्ञान को समृद्ध कर रहा है, बल्कि मेरे अंदर एक बेहतर सोच और दृष्टिकोण प्रदान कर रहा है। एक साल बहुत ही शानदार, जानदार, खूबसूरत, बेहतरीन पलों का सफर रहा है। फिलहाल मौसम अपने फुल मिजाज और मस्ती के मूड में है। मौसम कभी-कभी ऐसा होता है कि शिमला जैसा महसूस होने लगता है।

वर्धा विश्वविद्यालय ने हमें यह भी सिखाया कि सही का समर्थन और गलत का विरोध कैसे करना है। यहाँ आ कर मैं समझ पाया कि अपने विचारों और अधिकारों के लिए लड़ना कितना जरूरी होता है। वर्तमान में, मैं राजनीति विज्ञान विभाग का छात्र हूँ, विभाग में अध्ययन के दौरान अपने विषय और समाजिक मुद्दों को लेकर गहरी समझ विकसित हुई, मुझे अपने अंदर के विचारों और क्षमताओं से रूबरू होने का मौका मिला है।

विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में बिताए समय ने मेरे बौद्धिक समझ को और अधिक समृद्ध किया। ये किताबें मेरे लिए सिर्फ अध्ययन का साधन नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने मुझे जीवन जीने का तरीका भी सिखाया है तथा जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण दिया। छात्रों का जुटान और संगम का स्थान गांधी हिल कैफे है, जहाँ छात्र चाय-नाश्ते के लिए जुटते हैं। एक-दूसरे से रूबरू होने का सुखद मौका मिलता है चाय की चुस्की के साथ। वर्धा विश्वविद्यालय ने मुझे केवल एक विद्यार्थी ही नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और जागरूक इंसान बनाया है। इसीलिए, विश्वविद्यालयों को बचाना और संरक्षित करना आवश्यक है क्योंकि वे समाज में जागरूक और जिम्मेदार नागरिक पैदा करने का कार्य करते हैं।

जब हम एकलव्य पथ पर चलते हैं, तो हमें यह एहसास होता है कि कोई मंजिल दूर नहीं है, निरंतरता और समर्पण के साथ चलते रहने से एक दिन मंजिल जरूर मिलेगी। वर्धा विश्वविद्यालय मेरे लिए केवल एक शैक्षिक संस्थान नहीं, बल्कि एक ऐसा स्थान है, जहाँ मैं शिक्षा के साथ-साथ जीवन के कई महत्त्वपूर्ण सबक भी सीख रहा हूँ, यह वह जगह है, जहाँ मेरे विचारों ने उड़ान भरी, मेरे सपनों को पंख मिल रहे और जीवन की गहरी समझ विकसित हो रही है। विश्वविद्यालय और किताबें जीवन में एक नई दिशा और गहराई प्रदान करते हैं। विश्वविद्यालय का माहौल न केवल ज्ञान अर्जित करने का स्थान होता है, बल्कि यह नई मित्रताएं, विचारधाराएं और जीवन के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण भी विकसित करता है। किताबें हमें नई दुनियाओं में ले जाती हैं, हमारे विचारों का विस्तार करती हैं और हमें उन जगहों तक पहुँचाती हैं जहाँ हम शारीरिक रूप से नहीं जा सकते। शिक्षा और ज्ञान से भरा जीवन वाकई खूबसूरत होता है। विश्वविधालय हमारे सोचने और देखने का नजरिया वैश्विक बनाता है। विश्वविधालय हमारे जीवन को सतरंगी बनाता है।

वर्धा विश्वविद्यालय का शांत और सादगी से भरा वातावरण, छात्रों को न केवल शैक्षणिक दृष्टि से बल्कि जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण में भी एक महत्त्वपूर्ण बदलाव लाने का अवसर देता है। निरंतरता का जो सिद्धांत हम जीवन में अपनाते हैं, वह अक्सर हमारे पुराने अनुभवों और स्मृतियों से प्रभावित होता है। यह हमें एक पूर्व निर्धारित ढांचे में बांध देता है, जहाँ हम अपनी पुरानी आदतों और सोच के अनुसार ही आगे बढ़ते हैं। धीरे-धीरे यह एक साल यूं ही बीत गया और मुझे पता ही नहीं चला। वर्धा विश्वविद्यालय ने मुझे ज्ञान के साथ-साथ जीवन की महत्त्वपूर्ण बातें भी सिखाई हैं। यहाँ का अनुभव न केवल मेरी शिक्षा को समृद्ध कर रहा है, बल्कि मुझे एक बेहतर इंसान बनाने में भी मदद कर रहा है। इस विश्वविद्यालय में शिक्षा और जीवन का संगम सच में अद्वितीय है और मैं गर्व महसूस करता हूँ कि मैं इसका हिस्सा हूँ। वर्धा विश्वविद्यालय वास्तव में शिक्षा और जीवन का संगम है।

कुलदीप समदर्शी
छात्र, राजनीति विज्ञान विभाग, 
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-53, जुलाई-सितम्बर, 2024 UGC Care Approved Journal
इस अंक का सम्पादन  : विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन  चन्द्रदीप सिंह (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

2 टिप्पणियाँ

  1. दोस्त आप इसको बहुत पॉजिटिव लीजिएगा।
    आपके इस लेख में बहुत दोहराव है। एक ही बात को बार बार आप लिख रहे हैं। जबकि वर्धा के हिंदी विश्वविद्यालय के बारे में बहुत कुछ लिखा जा सकता था। जैसे वहां के मौसम के बारे में आप विस्तार से लिख सकते थे। वर्धा का मौसम किसी और शहर से तुलना करने वाला नहीं है। इस विश्वविद्यालय का अपना वातावरण है, अपना मौसम और अपना ही मिजाज़ भी है। वहां के छात्रावासों के बारे में आप लिख सकते थे। वहां के विदेशी विद्यार्थियों के बारे में लिख सकते थे।
    खैर आपने प्रयास किया है। इस विश्वविद्यालय में कुछ समय मैंने बिताया है इसलिए ये सुझाव आपको दे रहा हूं। आपको आगे के लिए शुभकामनाएं।

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  2. विश्वविद्यालयी जीवन निश्चित तौर पर हमारे संपूर्ण जीवनावधि का सबसे महत्वपूर्ण कालखंड होता है। यहां आपको सूचनाएं, समझ, ज्ञान और अनुसंधान एक साथ मिलते हैं। आपका जीवन, समाज और राष्ट्र को लेकर एक दृष्टिकोण विकसित होता है। बहुत से चिरंजीवी रिश्ते मिलते हैं। यहां से जाने के बाद भी हमारे मन में यह बसा रहता है। कुछ प्रोफेसर हमारे मन-मास्तिष्क और व्यक्तित्व पर ऐसी छाप अंकित करते हैं जो कभी धूमिल नहीं होती और कई कमजोर लम्हों में हमे सहारा देकर जीवन को प्रकाशित करती है। बेहद खास है यह जीवन और कुलदीप समदर्शी का यह चित्रण 🪷📚🌄🌅
    अशेष शुभकामनाएं प्रिय कुलदीप !

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