शोध आलेख : भारतीय समकालीन महिला कलाकारों की कला में प्रयोगशीलता के स्वर / अर्चना रानी

भारतीय समकालीन महिला कलाकारों की कला में प्रयोगशीलता के स्वर 
अर्चना रानी

 

शोध सार : महिला कलाकारों की कला में प्रयोगशीलता के स्वरनामक शोध-पत्र भारतीय कला के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करता हैजिसमें सर्वप्रथम पहलू है विषयों की विविधता। महिला कलाकार विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और मनोवैज्ञानिक विषयों को अपनी कला में प्रदर्शित करती हैं। वह समकालीन विषयों, महिला सशक्तिकरण, वातावरणीय विषयों, सामाजिक न्याय, भारतीय संस्कृति और परंपरानारी और जातिवाद, आदि जैसे विषयों पर अपनी कला अभिव्यक्ति करती हैं। दूसरा पहलू है कला के रूपांतरण की प्रक्रिया। वस्तुतः महिला कलाकार आधुनिक तकनीकों, माध्यमों और प्रयोगों द्वारा अपनी कला को अद्वितीय बनाती हैं। उन्होंने परंपरागत कला रूपों को भारतीय मान्यताओं से जोड़कर नई अभिव्यक्ति के नए द्वार खोले हैं। वह विभिन्न माध्यमों जैसे चित्र, ग्राफिटी, वीडियो आर्टइंस्टॉलेशन आर्ट, आदि का प्रयोग कर स्थानीय और वैश्विक दर्शकों को आकर्षित कर रहीं हैं।

बीज शब्द : समकालीन, महिला कलाकार, प्रयोगशीलता, विरासतइंस्टॉलेशन आर्टसंस्कृतिवीडियो आर्टतकनीक और परंपरा।

मूल आलेख : 

शोध-पत्र का उद्देश्य:

प्रस्तुत शोध-पत्र भारतीय समकालीन महिला कलाकारों की कला में प्रयोगशीलता के स्वर पर विशेष ध्यान केंद्रित करता है। शोध-पत्रलेखन का सर्वप्रथम उद्देश्य भारतीय समकालीन महिला कलाकारों की राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान कराना है। साथ ही महिला कलाकारों की कला में प्रयोगशीलता के विशेष आधार पर विश्लेषण किया जाएगा। इसमें उनके कला-कार्य, प्रयोग की तकनीक, माध्यम और स्वरूप के अनुसार महत्वपूर्ण पहलुओं का विश्लेषण होगा।

शोध पत्र की प्रक्रिया:

शोध-पत्र लेखिका भारतीय समकालीन महिला कलाकारों की कला में प्रयोगशीलता के स्वर जैसे एक योग्य विषय का चयन कर संग्रहित सामग्री का विश्लेषण कर विषयानुसार लेखन कार्य करती हैं। इसके बाद शोध-पत्र लेखिका परिणामों का व्याख्यान निष्कर्ष के रूप में प्रस्तुत करती हैं।

विषय प्रवेश:

कला का विकास मानव विकास के साथ हुआ माना जाता है मनुष्य ने हमेशा अपनी बौद्धिकता के बल पर नवीन माध्यमों, शैलियों का आविष्कार किया। कला का उदभव एवं विकास सामाजिक परिवर्तन एवं प्रक्रिया का भी मुख्य अंग है। मनुष्य को सभी जीवों में सबसे उच्च श्रेणी का जीव माना जाता है जो हमेशा नवीन आविष्कारों का जनक रहा है। एक कलाकार अपनी कला को एक साधना के रूप में मानता है वह अपनी कला में सदैव साधनारत रह कर नवीन प्रयोग करता है जो प्रयोग सफल होते हैं वह नवीन तकनीक, नवीन माध्यमों के रूप में हमारे सामने आते हैं। एक समय था जब कलाकार किसी भी नवीन कार्य को करने में हिचकिचाहट महसूस करता था परन्तु आज ऐसा नहीं है। आज एक कलाकार इतना स्वतन्त्र हो गया है कि वह अपनी बौद्धिकता एवं अपनी रूचि के अनुरूप किसी भी प्रकार की कलाकृति की रचना कर सकता है तथा किसी भी माध्यम तकनीक को उसी रूप में या कुछ नया रूप देकर प्रयोग कर सकता है। आज कलाकार कला में स्वयं की अभिव्यक्ति के बल पर नवीन तकनीक एवं नवीन माध्यमों का प्रयोग करने लगा है।[1]

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में महिला कलाकारों ने अपनी कला में नए और उत्कृष्ट तकनीकों का प्रयोग करके, नवीनतम माध्यमों और संसाधनों का उपयोग करके और विभिन्न विषयों पर आधारित अभिव्यक्ति के माध्यम से प्रयोगशीलता को साबित किया है।[2] महिला कलाकारों की कला में प्रयोगशीलता का पहलू कला तकनीकों का नवीनीकरण हैं।वह नए माध्यमों और टेक्नोलॉजी का सदुपयोग करके अपनी कला को सुंदरता, अभिव्यक्ति और संवेदनशीलता से भर देती हैं।[3] यह महिला कलाकारों को अद्वितीय और विभिन्न रूपों में अपनी कला को प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता देता है।

समकालीन कलाकारों का नवीन प्रयोगवादी कलाओं के स्वरूप:

सृष्टि के प्रारम्भ से ही कला, मानव जीवन को समझने और समझाने, का एक सशक्त माध्यम रही है। कला मानव के मनोभावों और अन्तर्दृष्टि का एक रेखांकित प्रारूप रही है और कलाकार की भावनाऐं रेखा, रंगों के माध्यम से चित्रों में विस्तारित होती रही है। किन्तु आज कला में बदलते स्वरूप को देखते हुए उसके सृजन को मात्र रेखांकित ही नहीं, रूपांकित, सृजित, संयोजित, प्रत्यारोपित, प्रतिस्थापित शब्दों से सम्बोधित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो कला के क्रमिक विकास के चलते कलाकार की कल्पना आज मात्र रेखांकन की देह में ही नहीं जीती, बल्कि मूर्ति, भित्तिचित्र (म्यूरल) टाइल्स, टेराकोटा, प्रतिस्थापन कला (इंस्टॉलेशन आर्ट) ग्राफिक आर्ट, मिश्रित माध्यम,  कोलाज, कम्प्यूटराइज़्ड विज्ञापन चित्रों में भी श्वास लेती है।[4] एक ओर कलाकार पर उसकी रचना का अन्तर्निहित दबाव उसे अपनी विषय संगत दृश्य सामग्री के चुनाव के लिए उत्प्रेरित करता रहा हैं तो दूसरी ओर कलाकार के दृष्टिकोण एवम् भावों को प्रेक्षक तक भली-भाँति प्रेषित करने में भी सफल रहा है। आज के समकालीन कला परिवेश में कलाकार कला मंच पर अपनी विशेष पहचान बनाने और कला जगत में अपना स्थान आरक्षित करने के लिए अपने चित्रों में कुछ विशेष रेखाओं, रंगों, प्रतीकों, चिन्हों, मंत्रों का इस प्रकार प्रयोग करता है मानों वह अपनी रचना को अपने विशेष मन्त्रों से अभिमन्त्रित कर रहा हो। आज के सृजनकार का काम करने का तरीका भिन्न है अपना एक विशेष तरीका निश्चित करते हुए कलाकार एक ही विषय को लेकर विभिन्न माध्यम, संयोजन में चित्र बनाता है। चित्रश्रृखंला तैयार करना, किसी विशेष माध्यम (तकनीक) में पारंगत होना यथा-ग्राफिक, आकृति मूलक अथवा अमूर्त चित्र, फोटोग्राफी, मिश्रित- माध्यम में सृजन करना। ऐसे ही अनेक मौलिक माध्यम सृजन सामग्री समकालीन कला की विशेषता बनती जा रही है। अपने इन्हीं मौलिक रूपों एवं सृजन विधि द्वारा कलाकार कला मंच पर सहज ही अपनी कृति के माध्यम से पहचाने जा सकते हैं।[5] इस प्रकार नवीन प्रयोगवादी कला एक विशेष प्रकार की कला है जो समकालीन कलाकारों द्वारा प्रदर्शित की जाती है। इस कला के स्वरूप में कई मार्ग और रूपांतरण हो सकते हैं, लेकिन इसकी कुछ मुख्यताएं हैंनवीनता और प्रयोगशीलतासामाजिक परिवर्तन की चुनौती।[6] इस कला के माध्यम से कलाकार सामाजिक विषयों पर अपनी राय प्रकट करते हैं और समाज को सोचने और संवेदनशीलता के माध्यम से प्रेरित करते हैं।

समकालीन कलाकार अर्पणा कौर की कला में प्रयोगशीलताः

अर्पणा कौर एक ऐसी कलाकार हैं जिन्होंने अपनी कलाकृतियों के माध्यम से दर्शकों को ताजगी का एहसास कराने का प्रयास किया है। उनकी यही खूबी उन्हें अन्य कलाकारों से अलग श्रेणी में खड़ा करती है। उनकी कलाकृतियों में रचनात्मकता भरी पड़ी है। जब से उन्होंने कलाकृतियों का सृजन करना आरंभ कियायह ताजगी उनकी कलाकृतियों की एक अनूठी विशेषता बन चुकी है। रचनात्मकता के अलावा उनकी कलाकृतियों में समकालीनता का भी बख़ूबी प्रतिनिधित्व किया गया है। उनकी कलाकृतियों में हमें ट्रैफ़िक लाईट  देख सकते हैं, बौद्ध धर्म विषयक चित्रों में बिजली के स्विच का उपयोग किया गया है। ये सभी गैजेट्स उनकी कलाकृतियों का हिस्सा है। उन्होंने अपने कला जीवन की शुरुआत 1975 में प्रारंभ की थी यह वह समय था जब कला को लेकर दर्शक बहुत उत्साहित नहीं थे और एक कलाकार के लिए अपनी पहचान बनाना बहुत मुश्किल था। ऐसे समय में उन्होंने अपने का काम में समकालीनता की पुट लाकर उसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया और अपनी योग्यता सिद्ध की।[7] समकालीनता के तत्व होते हुए भी उनकी कला पौराणिक कला से प्रेरित है। कलाकार ने जलरंग, गवाश एवं तेल रंगों- तीनों माध्यमों में अपनी तूलिका चलायी है। उनका कहना है कि समकालीन कला व्यक्तिवादी है ,वह कैलेंडर कला के विपरीत होते हुए भी लोकप्रिय हैं। इसके अलावा आज की कला ने सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग होता है,वह बिलकुल कविता के समान है। वस्तुतः यह कला कलाकार के अनुभव, संवेदनशीलता और कल्पना का सुंदर सम्मिश्रण से बनी होती है।[8] कलाकार अपने मस्तिष्क में सृजित रूप को किसी माध्यम पर उतारता है। जिसे समझना भी मुश्किल नहीं होता केवल एक समझ की आवश्यकता होती है। अर्पणा कौर की प्रत्येक श्रृंखला स्वयम में अनोखी  है। उनके पास बहुत सारे नए विचार हैं जिन्हें वह अपनी पेंटिंग के माध्यम से प्रस्तुत करती हैं। उनके अनुसार चित्रों में सृजित उनके विचार और कल्पनाएँ सभी उभरती हैं। उन्हें अपनी कलाकृतियां में भी द्वंद्वों को चित्रित करना पसंद है। उनका मानना है कि एक थर्मल पावर स्टेशन जिसकी दीवारों पर गाय के गोबर के उपले सूख रहे हैं- ऊर्जा के दो स्रोत हैं। ऐसे विपरीत तत्वों को चित्र में स्थान देना उन्हें बहुत पसंद है। इस प्रकार अर्पणा कौर का काम महिला-बुद्धिजीवियों और कलाकारों के बीच केवल स्वार्थ की खोज और समाज के साथ नए संबंध बनाने की आवश्यकता के लिए उभरती चेतना का प्रतीक है, बल्कि कला में नई संवेदनाओं को विकसित करने का भी प्रतीक है जो चित्रण में स्पष्ट रूप से महसूस की जाती हैं।अर्पणा की कला हमारे समय, हमारे जीवन से संबंधित है जिसमें लगातार बढ़ती नई वास्तविकताओं को पूरा करने के लिए सीमाओं और संदर्भों को बदला जा रहा है।[9]

अपर्णा ने अपनी कलाकृतियों की विभिन्न श्रृंखलाओं में, जीवन की स्थितियों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है, विशेष रूप से महिलाओं की दुर्दशा और हमारे समाज में बढ़ती हिंसा से निपटते हुए, जैसे कि 'महिलाएं' नामक उनकी पेंटिंग की श्रृंखला में। वह कृति सामाजिक-राजनीतिक घटनाओं पर चिंताजनक बयान देती प्रतीत होती है। चूँकि वह मनुष्य और इस दुर्दशा के प्रति पूरी तरह जागरूक है, इसलिए उसकी कलाकृतियाँ जीवन की कड़वी सच्चाई की छवियां हैं।

वह पहाड़ी लघुचित्रों की कुछ विशिष्ट विशेषताओं, गोलाकार आकृतियों, घुमावदार क्षितिज, आकाश, पृथ्वी और पानी में पृष्ठभूमि का विभाजन और विचारों की बहुलता को व्यक्त करने के लिए चित्रात्मक रूप में गतिविधि के कई केंद्रों का निर्माण करके अपनी रचना की संरचना करती है। उनकी रचनाएँ दर्शकों में सौंदर्यबोध के साथ-साथ दार्शनिक विवेक की खोज के लिए एक सोच भी प्रदान करती हैं।

समकालीन कलाकार अर्पिता सिंह की कला में प्रयोगशीलताः

भारतीय समकालीन महिला कलाकारों में अर्पिता अपनी विशेष पहचान रखती हैं। अर्पिता सिंह का जन्म 1937 में हुआ था और बाद में उन्होंने दिल्ली पॉलिटेक्निक में ललित कला में डिप्लोमा किया और फिर "कोलकाता और नई दिल्ली में बुनकर सेवा केंद्रों" में एक डिजाइनर के रूप में कार्य किया। अर्पिता एक समकालीन चित्रकार हैं, उनके कार्यों में पारंपरिक भारतीय कला रूप और सौंदर्यशास्त्र भी शामिल हैं, जैसे लघु चित्रकला और लोक कला के विभिन्न रूप, उन्हें नियमित रूप से अपने काम में नियोजित करते हैं।[10] अर्पिता ने ब्रिटिश शासन से भारत को आजादी मिलने से एक साल पहले 1946 में अपनी मां और भाई के साथ कोलकाता छोड़ दिया था। 1962 में, उन्होंने साथी कलाकार परमजीत सिंह से शादी की और उनकी एक बेटी, कलाकार अंजुम सिंह है। वर्तमान में वह नई दिल्ली में रहती है।

अर्पिता की प्रारंभिक रचनाओं का माध्यम काग़ज़ रहा। सन् 1980 के आस पास उन्होंने बंगाली लोक चित्रों से प्रेरित होकर महिला विषयों को चित्रित करना प्रारंभ कर दिया। इस समय की उनकी कलाकृतियों में गुलाबी और नीले रंग की बहुलता देखी जा सकती है। उस समय अर्पिता पेड़, फूल, फूलदान, जानवर, चायदानी, तकिए, उत्सव और झंडे जैसी दैनिक उपयोग की वस्तुओं को खींचती थी और महिलाओं को उनके चारों ओर दिखाती थी। समय परिवर्तन के सासाराम अर्पिता समय परिवर्तन के साथ-साथ अर्पिता सिंह ने नए-नए माध्यमों का आविष्कार कर कला जगत में उल्लेखनीय योगदान दिया है।[11] पिछले पच्चीस वर्षों में उनका योगदान विशेष उल्लेखनीय हैं। उन्होंने कपड़ों में बुनावट की प्रक्रिया के साथ आकृतियों को उभारने का काम किया है। अर्पिता की कलात्मक यात्रा में कई विराम चिह्न हैं, जो केवल पत्नी और मां की भूमिका निभाने के समय की कमी के साथ नहीं थे, बल्कि उनकी कला-निर्माण में आत्म-असंतोष के मंत्र भी थे।[12] अमूर्त चित्रण एवं अलंकारयुक्त चित्रों के सृजन में उनका मन नहीं रमता था। उन्होंने अपने आठ वर्ष जैसे लंबे समय में सिर्फ़ ड्राइंग बनायी और इस सोच में लगी रही कि किस प्रकार अपनी संवेदनशीलता को चित्रों के माध्यम से अभिव्यक्त कर सके। उनके बचपन के खिलौने जिसमें हथियारों के साथ-साथ हवाई जहाज़,फूलों का गुलदस्ता, बच्चों वाली कार हैं,जिन्हें उन्होंने प्रतीकात्मक रूप में अपने चित्रों में स्थान दिया है। उन्होंने समाज की आइने को भी अपने चित्रों में क़ैद दिखाने की पूरी कोशिश की है जिसका सबसे अच्छा उदाहरण उनका चित्र दो खरीदों दो मुफ़्त पाओ है। अर्पिता के चित्र विदेशों में बहुत महंगे मूल्यों में ख़रीदे जाते हैं अनेक नीलामी घर उनके चित्रों की नीलामी करते हैं।[13] अपनी कला उपलब्धि के लिए उन्हें अनेक पुरस्कार एवं सम्मानों से पुरस्कृत किया जा चुका है वह आज भी कला कार्य में संलग्न हैं।

समकालीन कलाकार नलिनी मलानीकी कला में प्रयोगशीलताः

नलिनी मलानी एक अग्रणी समकालीन कलाकार हैंजिनकी कला विभिन्न रूपों में प्रकट होती है। नलिनी मलानी का जन्म 1946 में भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के कराचीपुर शहर में हुआ। उन्होंने मुंबई और पेरिस में अपनी कला शिक्षा प्राप्त की। नलिनी मलानी की कला में इंस्टॉलेशन कला एक प्रमुख भूमिका निभाती है। नलिनी मलानी की इंस्टॉलेशन ला की विशेषता यह है कि वह सामुदायिकता, राष्ट्रीयता, और जातिवाद जैसे सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।[14] उनके इंस्टॉलेशन यात्राए चित्रए प्रकाश और आवाज के साथ जुड़े रहते हैं। उनकी कला में प्रयोग होने वाली छवियोंए फिल्मोंए और तारीकों का उपयोग किया जाता है। नलिनी मलानी की इंस्टॉलेशन कला के एक उदाहरण के रूप मेंए हम उनकेमहिषासुर र्दनी और लव जैसे कार्यों का उल्लेख कर सकते हैं। इन इंस्टॉलेशन में उन्होंने विभिन्न तकनीकों का उपयोग करके रंगए प्रकाश और ध्वनि को संयोजित किया है। यह कार्य दर्शकों को सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। वस्तुतः नलिनी मलानी एक बहुत अच्छी चित्रकार और कथाकार हैं। उन्होंने अपनी प्रारंभिक कला की शुरूआत ड्राइंग एवं चित्रकला से प्रारंभ की। सन् 1990 से वह वीडियो, फ़िल्म और एनीमेशन जैसी न्यू मीडिया आर्ट में प्रयोग कर रहीं हैं। नलिनी के काम की विशेषता आसपास के अंतरिक्ष में चित्रात्मक सतह का विस्तार है जो अल्पकालिक दीवार चित्रए नाटक, प्रतिष्ठानों, बहु प्रक्षेपण कार्यों और थिएटर का रूप लेती है। उनकी कलाकृतियां अक्सर राजनीतिक रूप से सशक्त होती हैं। अपने पूरे कला जीवन में उन्होंने निम्न स्तरीय लोगों की दुख.दर्द को आवाज़ देने का प्रयास अपनी कलाकृतियों के माध्यम से किया है। उनकी अनेक कलाकृतियाँ अंतरराष्ट्रीय कला संग्रहालयों की शोभा बढ़ा रही है। उनकी कला मुख्य रूप से भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद की शरणार्थी के रूप में अनुभवों के आधार पर आधारित है। जब वह सिर्फ़ एक वर्ष की थी तब उनका पूरा परिवार अपना सारा सामान पाकिस्तान छोडकर नाव से मुंबई गया था। जिसका प्रत्यक्ष अनुभव तो उन्हें नहीं है पर अपनी माँ और दादी से उन्होंने उस बुरे अनुभव को अनेक बार सुना था। जैसा ऊपर कहा गया है कि मलानी ने अपनी कला की शुरूआत रेखाचित्रों और कलाकृतियों से की थी लेकिन वह वीडियो और इंस्टॉलेशन कलाकार के रूप में आज विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।

मलानी की सन् 2005 में निर्मित ष्मदर इंडियारू ट्रांजैक्शंस इन कंस्ट्रक्शन ऑफ पेनश् एक पांच चैनल वाला वीडियो प्ले है जो 1947.48 के विभाजन पर आधारित है।[15] विभाजन के समय के कोलकाता और पश्चिम बंगाल का विभाजन भयानक एवं विनाशकारी था। मलानी की माँ बंगाली शरणार्थियों के पुनर्वास में स्वयं को समर्पित कर दिया जहाँ वह अपनी पुत्री को भी अपने साथ ले जाया करती थी जिनका प्रभाव मलानी के मन पर था जिसे उन्होंने अपनी कला में दर्शाने का प्रयास किया है। मलानी का अधिकांश काम इतिहास और संस्कृति की टूटती जुडती धाराओं से संबंधित है।[16] नलिनी ने अपने शुरुआती दिनों में कागज़ पर चित्रकारी करना प्रारंभ किया। कला प्रतिभा तो उसमें असाधारण थीए परंतु घर छोटा था इसलिए उन्होंने मध्यम आकार के कैनवास के साथ कागज़ पर काम करने का मन बनाया। उन्होंने अपनी एक कलाकृति में अपना एक कला.स्टूडियो दिखाया है जिसमें अधूरी कलाकृतियाँ और किताबों का ढेर भरा हुआ है।उनके काम करने की  मेज़ खिड़की के पास हैं जहाँ से छत दिखाई दे रही है।एक सफ़ेद काग़ज़ मेज़ पर रखा हुआ है जिस पर काम किया जा सकता है। इस तरह से उन्होंने अपने जीवन के मनोभावों को अपनी कलाकृतियों का विषय बनाया। समय के साथ साथ मलानी ने अपने द्वारा उपयोग किए जाने वाले कई माध्यमों में अपनी बहुमुखी प्रतिभा को बढ़ाया है।[17] जलरंग और तैल रंगों के साथ, कागज पर ऐक्रेलिक और चाक, मुलायम पेस्टल और लकड़ी का कोयला और पॉलिएस्टर पर स्याही और तामचीनी के साथ भी सिद्धहस्तता प्राप्त की है। उन्होंने मुद्रण प्रक्रिया को भी अपने कला का आधार बनाया और अनेक मोनो प्रिंट भी सृजित किए। पाँच दशकों के शानदार कला उपलब्धियों के दौरान उनकी कला मैं नारी को प्रधानता रही है। विडंबना यह है कि एक बार एक वरिष्ठ पुरुष चित्रकार ने कहा कि उनकी कला में नारीत्व जैसा कुछ भी नहीं है। वह भारतीय महिला कलाकारों के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं और उनकी पुरुष प्रधान समाज को चुनौती देती प्रतीत होती है।[18]

मलानी के पिता एयर इंडिया में नौकरी करते थे अतः उन्होंने अनेक विदेश यात्रायें की हैं। सन 1970 में उन्हें फ़्रांसीसी सरकार द्वारा छात्रवृत्ति दिए जाने पर वह दो वर्ष पेरिस में रहीं। बाद में वह भारत, अमेरिका, सिंगापुर, जापान, इटली जैसे विभिन्न देशों में रही हैं। अपने पूरे कला जीवन में वह अब तक सत्तरह से अधिक देशों में अपनी कला की प्रतिभा मनवा चुकी हैं।न्यू मीडिया कला में कई महिला कलाकारों ने अपनी पहचान बनाई है और विभिन्न तकनीकों का प्रयोग करके नवीनतम और अभिनव कला रचनाएं विकसित की हैं। वे वीडियो आर्ट, डिजिटल आर्ट, इंटरनेट आर्ट, फोटोग्राफी, साउंड आर्ट, इंस्टॉलेशन आर्ट, आदि में नई और स्वतंत्रता पूर्ण व्याख्याओं का निर्माण करती हैं।वे नए संदर्भों, नई प्रदर्शन तकनीकों, और वेब प्लेटफ़ॉर्मों के उपयोग से श्रोताओं को सक्रिय बनाने में सक्षम होती हैं।[19]इस प्रकार मलानी ने न्यू मीडिया कला के माध्यम से समाज के विभिन्न मुद्दों पर अपनी आवाज़ को पहुंचाया है।

भारतीय समकालीन महिला कलाकारों की न्यू मीडिया कला में प्रयोगशीलता से प्रेरित कला नई और स्वतंत्र ढ़ंग से आवाज़ बुलंद करती है। इसे उनकी पहचान और बदलती हुई सामाजिक, सांस्कृतिक, और राजनीतिक प्रवृत्तियों की आवाज़ के रूप में देखा जा सकता है। न्यू मीडिया कला उन्हें नये संदर्भों में रचनात्मकता का माध्यम देती है और समकालीन समाज के मुद्दों को व्यक्त करने के लिए उन्हें सशक्त करती है।[20]

कला और साहित्य के माध्यम से समाज को चुनौती देने वाली शिल्पा गुप्ता

भारतीय समकालीन महिला कलाकार शिल्पा गुप्ता एक प्रमुख चित्रकार हैं, जो अपने कार्य में प्रयोगशीलता द्वारा व्यक्तिगत और सामाजिक मुद्दों को जगाती हैं। प्रयोगशीलता के स्वरूप में कला का प्रयोगशिल्पा गुप्ता अपने कार्य में विभिन्न माध्यमों का प्रयोग करती हैं, जिसमें संवाद, सामाजिक चेतना, और राष्ट्रीयता के मुद्दे जगृत करने का प्रयास किया जाता है। उनकी कला में इंस्टॉलेशन, वीडियो, ध्वनि और डिजिटल माध्यम का अद्वितीय संयोजन शामिल है। शिल्पा गुप्ता डिजिटल माध्यम का उपयोग करके नवीनतम प्रोयोगशैली को प्रस्तुत करती हैं। उनके डिजिटल कार्यों में गतिशीलता, वेब इंटरफेस, और इंटरैक्टिव तत्व शामिल होते हैं।

निष्कर्ष समकालीन महिला कलाकारों ने नवीन प्रयोगवादी कला में महत्वपूर्ण योगदान किया है। यह कला उनकी रचनात्मकता, नवीनता, और अनुभव के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक, वातावरणिक, और मानवीय मुद्दों को दर्शाती है। इसके द्वारा, वे नए कला-साधनों, सामग्री के उपयोग और रचनात्मक प्रक्रियाओं का अविष्कार करते हैं। सार रुप में कला एक रचनात्मक चेष्टा है और सौन्दर्य उसका सर्वप्रमुख गुण है। समसामयिक कला में स्वच्छन्दताए व्यक्तिवादित तथा नवीन प्रयोगों की प्रवृत्ति दिखाई देती है। आज संयोजन के अर्थ बदल गये हैं। चित्रकारों की रचनाधर्मिता में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। आज चित्रकार कला में स्वयं के सृजनको अधिक महत्व देते हैं। वैसे भी परिवर्तन प्रकृति का नियम है। कलाकार अपने देश तथा विदेशों में हुए परिवर्तन के प्रभाव को देखता है। यह चक्र आज से नहीं वरन् युगों.युगों से चलता रहा है। अगर परिवर्तन का वैशिष्ट्य नहीं होता तो कला को स्रोत वहीं रुक जाते। कला कब की समाप्त हो गई होती। वैज्ञानिक खोज क्या आज भी जारी नहीं है। बस अन्तर यह है कि आज खोजों, अविष्कारों के साथ.साथ दृष्टिकोण एवं अनुभव में भी परिवर्तन आया है, जो आवश्यक भी है। समय के साथ.साथ प्रौद्योगिकी बदल जाती है, कला.सामग्री बदल जाती है। नये अविष्कारए नई खोज के साथ. नये माध्यम पनपते हैं। हमंे सब को स्वीकार करना चाहिये तथा समझने की कौशिश करनी चाहिऐ। यह समझ कला का आधार बनती है।

उपसंहार के रूप में, यह कहा जा सकता है कि समकालीन कलाकारों ने नवीन प्रयोगवादी कला में अत्यधिक योगदान किया है। उनका साहस, सर्जनशीलता, और सोच की प्रकृति नए दृष्टिकोण और नवीनता को जीवंत करते हैं। इस प्रकार, वे सामाजिक, राजनीतिक और मानवीय मुद्दों को चुनौती देते हैं और स्वयं को कला के माध्यम से व्यक्त करते हैं।

सन्दर्भ :
[1]प्रेमचन्द्र गोस्वामी - आधुनिक कला की वर्तमान स्थिति और दशा, जयपुरः राजस्थान ललित कला अकादमी, 1995.
[2]कला संस्कृति में प्रयोगधर्मिता के नवीन आयाम - सम्पा0- डॉ. सविता नाग, प्रकाशकः कला विभाग, रघुनाथ गर्ल्स (पीजी) कॉलेज, मेरठ-2012 पृष्ठ-69
[3]डॉ. रामविरंजन - आधुनिक कला एवं प्रयोगधर्मिता, कलादीर्धा, सम्पा0- डॉ. अवधेश मिश्र, अंक-3, नं0-61, अप्रैल 2003.
[4]सरन सक्सैना एवं सुधा सक्सैना - कला सिद्धान्त एवं परम्परा, आगरा।
[5]कला त्रैमासिक, लखनऊ, अंक 30, 2012.
[6]समकालीन कला - ललित कला अकादमी, सम्पादक-ज्योतिष जोशी, नई दिल्ली का प्रकाशन, फरवरी-मई 2003, अंक 24.
[7]दृश्य कला का दृष्टिकोण- डॉ. एस. एन. सक्सैना, मनोरमा प्रकाशन, कानपुर, 2002, पृष्ठ 25
[8]डॉ. जी0के0 अग्रवाल - आधुनिक भारतीय चित्रकला, आगरा - संजय पब्लिकेशन्स, तृतीय संस्करण, 2002
[9]डॉ. गिर्राज किशोर अग्रवाल - कला निबन्ध, अलीगढ़ः ललित कला प्रकाशन, प्रथम संस्करण, 1971.
[10]एक नया आत्मविश्वास आया है भारतीय कला में- विनोद भारद्वाज, जनसत्ता, 2 अगस्त 1998, पृष्ठ 4
[11]डॉ. अर्चना रानी (सम्पादक)- समकालीन कलाः विविध परिदृश्य, प्रकाशक- ड्राइंग एवं पेण्टिंग विभाग,रघुनाथ गर्ल्स (पीजी) कॉलेज, मेरठ, 2012.
[12]डॉ. आनन्द लखटकिया, प्रो00 के सिंह, प्रो0 प्रतिमा अस्थाना-एक्सप्रेशन, बरेली, 2012.
[13]समकालीन कला- विविध परिदृश्य - डॉ. अर्चना रानी (सम्पादक) मेरठ, 2012.
[14]डॉ. अलका तिवारी - कला विविधा, मेरठ- मानसी प्रकाशन, 2015.
[15]कलावार्ता, भोपाल, उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी, अंक 128, अक्टूबर - दिसम्बर, 2009.
[16]नलिनी मलानी डॉ. अर्चना रानी (सम्पादक)- वैश्वीकृत युग में समकालीन कला विपणन, प्रकाशक, ड्राइंग एवं पेण्टिंग विभाग, रघुनाथ गर्ल्स (पीजी) कॉलेज, मेरठ, 2012.
[17]अभिनव मीमांसा, सम्पादक - विवके पाण्डेय, वर्ष-3, अंक-1, लखनऊ, अक्टूबर 2012.
[18]ई. कुमारिल स्वामीः भारतीय कला और कलाकार प्रकाशनः सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार नवम्बर 1996 पृष्ठ सं0 62
[19]समकालीन कला - अवधेश अमन: समकालीन के नये अर्थ, अंक 17, मई 1996, पृष्ठ 15
[20]एक नया आत्मविश्वास आया है भारतीय कला में- विनोद भारद्वाज, जनसत्ता, 2 अगस्त 1998, पृष्ठ 4

 

प्रोफ़ेसर अर्चना रानी
प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष, विजुअल आर्ट: ड्राइंग एवं पेंटिंग विभागरघुनाथ गर्ल्सपोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, मेरठ-250001
drarchana.art@gmail.com, 9410273625


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