शोध आलेख : कोच्चि-मुजिरिस बिनाले: संस्कृति और रचनात्मकता का कैनवास / कुमुदिनी भरावा

 कोच्चि-मुजिरिस बिनाले: संस्कृति और रचनात्मकता का कैनवास

- कुमुदिनी भरावा

शोध सार : कलाकार तथा कलाकृतियों की सामाजिक निष्ठा के लिए कला आयोजन एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे आयोजनों से सम्पूर्ण समाज प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से लाभान्वित होता है क्योंकि इनके माध्यम से समाज में चेतना एवं सौंदर्य बोध का विस्तार होता है। यही कारण है कि सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक घटनाओं का प्रभाव कला पर भी परिलक्षित होता है। विभिन्न कला आयोजन कलाकार व समाज को एक-दूसरे से जोड़ते हैं जिससे कलाकार को समाज में एक समुचित वातावरण प्राप्त होता है। जहाँ कलाकार अपने विचारों को अभिव्यक्ति देता है वहीँ दर्शक भी कलाकार के विचारों से वाकिफ होकर सौंदर्यपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाते हैं। कला की सृष्टि का संबंध कलाकार से हैं जबकि उसका प्रसार दर्शक से होता है। अतः कलाकारों व दर्शकों का परस्पर ध्यानाकर्षित करने हेतु कला सम्बंधित विभिन्न गतिविधियाँ समय–समय पर आयोजित की जाती हैं। कला आयोजनों के माध्यम से भारतीय समकालीन कलाओं ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी और आकृष्ट किया है। प्रदर्शनियों, कला मेलों, संगोष्ठियों, सेमिनारों, कला प्रतियोगिताओं आदि के माध्यम से कला का भूमंडलीकरण हुआ हैं जिससे उसका स्वरुप भी निरंतर बदलता गया है। वर्तमान में ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ देश का सबसे बड़ा समकालीन सार्वजनिक कला आयोजन बन गया है। हर दूसरे साल आयोजित होने वाले इस आयोजन में भारत और दुनिया के स्थापित और उभरते कलाकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियाँ प्रदर्शित की जाती हैं। प्रदर्शनी में फिल्म, इंस्टॉलेशन, पेंटिंग, मूर्तिकला, न्यू मीडिया और प्रदर्शन कला जैसे विभिन्न माध्यमों को प्रस्तुत किया जाता है। प्रत्येक संस्करण के साथ इस आयोजन ने समकालीन कला के एक गतिशील केंद्र के रूप में कोच्चि की स्थिति को मजबूत किया है तथा स्थानीय परंपराओं और वैश्विक कलात्मक रुझानों के बीच की खाई को पाटने का काम किया है।

बीज शब्द : कला आयोजन, कला प्रदर्शन, जनकला, सार्वजनिक कला, कोच्चि बिनाले, समकालीन कला, कला उत्सव, बिनाले फाउंडेशन, कोंसेप्चुअल आर्ट, पार्टिसिपेटरी आर्ट, कलात्मक अभिव्यक्ति। 

मूल आलेख : भारत में आज बहुत से कला आयोजन सरकारी व निजी संस्थानों द्वारा सामूहिक व एकल रूप से आयोजित किये जा रहे हैं। कला अवधारणाओं व कला माध्यमों के बदलते स्वरूप के साथ कला आयोजन भी कई तरह के बदलाव व विस्तार की ओर अग्रसर हुए हैं। कलाओं का प्रदर्शन यूँ तो निरंतर होता आ रहा है किन्तु स्वतंत्रता के बाद से अब तक के समय में कला के प्रदर्शन व कला के साथ समाज के दृष्टिकोण में काफी बदलाव आया है। यहाँ तक कि कला प्रदर्शन के स्थलों में भी हमें बेहद परिवर्तन दिखाई देते हैं। कला महँगी दीर्घाओं से लेकर जनकला के रूप में प्रदर्शित होने लगी है या यूँ कहें कि कला और समाज एक दूसरे के ओर निकट आये हैं।

भारतीय कला परिवेश में स्वतंत्रता के बाद से हो रहे कला आयोजनों से समाज, कलाकारों व कलाकृतियों के प्रदर्शन स्थिति पर उत्तरोत्तर परिवर्तन परिलक्षित हुआ है। कला आयोजनों द्वारा कलाकार अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ समाज को भी एक नया दृष्टिकोण देता है। ऐसे आयोजन उनके कला-सर्जन को प्रोत्साहित कर सर्जनात्मकता को बढ़ावा देते हैं तथा भावी कलाकारों में रूचि जाग्रत करते हैं। सरकारी व निजी संस्थाओं द्वारा कला आयोजन समय-समय पर आयोजित करवाये जाते रहे हैं जो न सिर्फ कलाकारों को सामने लाते हैं बल्कि देश-दुनिया के भीतर चल रही कलाओं की दशा-दिशा से भी रूबरू करवाते हैं।

भारत के केरल राज्य के हृदय में हर दो साल में समकालीन कला का एक जीवंत उत्सव आयोजित होता है जो ऐतिहासिक शहर कोच्चि को एक वैश्विक सांस्कृतिक केंद्र में परिवर्तित कर  देता है। ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ की शुरुआत एक महत्त्वाकांक्षी परियोजना के रूप में हुई जिसका उद्देश्य भारत में समकालीन कला के लिए एक प्रमुख मंच बनाना था। वर्ष 2012 में हुई शुरूआत के साथ आज ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ जल्द ही एशिया के सबसे बड़े और महत्त्वपूर्ण समकालीन कला आयोजनों में से एक बन गया है जो दुनियाभर के कलाकारों, कला निर्देशकों और कला प्रेमियों को आकर्षित करता है।


कोच्चि अपनी औपनिवेशिक वास्तुकला, व्यस्त मसाला बाजारों और विविध सांस्कृतिक प्रभावों के समृद्ध ताने-बाने के साथ इस अंतरराष्ट्रीय कला उत्सव के लिए एक अनूठी पृष्ठभूमि प्रदान करता है। बिनाले आयोजन के दौरान शहरभर में विभिन्न स्थानों का उपयोग कलात्मक प्रदर्शन के लिए किया जाता है जिसमें ऐतिहासिक महत्त्व के भवन, गोदाम और सार्वजनिक स्थान शामिल हैं जो ऐतिहासिक संदर्भ और अत्याधुनिक कलात्मक अभिव्यक्ति का संगम हैं।


कोच्चि-मुजिरिस बिनाले की अवधारणा और स्थापना -


‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ की अवधारणा और स्थापना एक रोमांचक यात्रा रही है जो कला के प्रति समर्पण, सांस्कृतिक दृष्टिकोण और सामुदायिक सहयोग का प्रतीक है। कोच्चि बिनाले की अवधारणा दो प्रख्यात केरल के कलाकारों बोस कृष्णमाचारी और रियास कोमु के मस्तिष्क की उपज थी। उन्होंने महसूस किया कि भारत में एक अंतरराष्ट्रीय स्तर के समकालीन कला उत्सव की कमी है। कलाकारों ने एक ऐसे बिनाले की कल्पना की जो न केवल अंतरराष्ट्रीय कला को भारत लाएगा बल्कि भारतीय कला को भी वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करेगा। उन्होंने इसे एक ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में देखा जो स्थानीय और वैश्विक कला को एक साथ एक मंच पर लाएगा। उनका विचार था कि केरल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और कोच्चि के ऐतिहासिक महत्त्व का लाभ उठाकर एक अंतरराष्ट्रीय कला उत्सव का आयोजन किया जाए। कोच्चि एक ऐतिहासिक बंदरगाह शहर है जिसमें विविध सांस्कृतिक विरासत विद्यमान है। कोच्चि में बड़े पैमाने पर कला प्रदर्शनी के लिए उपयुक्त स्थानों की कमी तो थी लेकिन इस चुनौती को अवसर में बदलते हुए ऐतिहासिक इमारतों और सार्वजनिक स्थानों को प्रदर्शनी स्थलों में बदलने का निर्णय लिया। शहर की प्राचीन वास्तुकला और समृद्ध इतिहास को कला प्रदर्शनों के लिए एक अनूठे परिवेश के रूप में देखा गया। ऐतिहासिक और औपनिवेशिक इमारतों का उपयोग प्रदर्शनी स्थलों के रूप में किया गया। इन स्थलों ने कला को एक नया संदर्भ प्रदान किया और शहर के इतिहास को जीवंत किया। “ऐतिहासिक व्यापारिक भवन आस्पिनवॉल हाउस, दरबार हॉल, डेविड हॉल, पेपर हाउस, मोइदु हेरिटेज, कैब्राल यार्ड, परेड ग्राउंड, फोर्ट कोच्चि समुद्र तट, कोचीन क्लब, मट्टनचेरी बोट जेट्टी और मट्टनचेरी पैलेस या डच पैलेस कोच्चि बिनाले के मुख्य स्थल हैं

जहाँ बिनाले के दौरान कलाकृतियों को प्रदर्शित किया जाता है।”(1)


कोच्चि बिनाले फाउंडेशन की स्थापना -


बिनाले के संचालन के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन ‘कोच्चि बिनाले फाउंडेशन’ की स्थापना की गई। इस फाउंडेशन को केरल सरकार के सहयोग से स्थापित किया गया। “मई 2010 में भारत में समकालीन कला के लिए एक अंतरराष्ट्रीय मंच की कमी को स्वीकार करते हुए समकालीन कलाकार बोस कृष्णमाचारी और रियास कोमू  ने वेनिस बिनाले की तर्ज पर कोच्चि में एक अंतरराष्ट्रीय कला परियोजना शुरू करने का अपना प्रस्ताव केरल सरकार के तत्कालीन संस्कृति मंत्री एम.ए. बेबी के सामने रखा तथा बिनाले के संभावित सांस्कृतिक और आर्थिक लाभों पर प्रकाश डाला। केरल सरकार ने इस विचार को उत्साहजनक रूप से स्वीकार किया। सरकार ने इसे राज्य की कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के एक अवसर के रूप में देखा।”(2) केरल सरकार ने इस विचार का समर्थन किया और ‘कोच्चि बिनाले फाउंडेशन’ की स्थापना की गई। ‘कोच्चि बिनाले फाउंडेशन’ (केबीएफ) एक गैर-लाभकारी ट्रस्ट है जो भारत में कला और संस्कृति को बढ़ावा देने में लगा हुआ है। इसका मुख्य उद्देश्य ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ का सफल आयोजन करना है। बोस कृष्णमाचारी और रियास कोमू ‘कोच्चि बिनाले फाउंडेशन’ के सह-संस्थापक और कलात्मक निदेशक बने। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को भी ‘कोच्चि बिनाले फाउंडेशन’ में शामिल किया गया जिनमें कला प्रशासक, क्यूरेटर और पेशेवर प्रबंधक भी शामिल थे। 

केरल के फोर्ट कोच्चि जैसे शांत शहर में आयोजित ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ एक दृश्यात्मक आयोजन है जो कला प्रेमियों को आधुनिकता के सागर में गोता लगाने के लिए आमंत्रित करता है। ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ आधुनिक महानगर कोच्चि और उसके पौराणिक पूर्ववर्ती प्राचीन बंदरगाह मुजिरिस की ऐतिहासिक महानगरीय विरासत की याद दिलाता है। बिनाले का उद्देश्य नई भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कलाओं का प्रदर्शन करना, जनता, कलाकारों, क्यूरेटर तथा स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के बीच संवाद को सक्षम बनाना है। ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ भारत में महत्त्वाकांक्षी समकालीन अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला परियोजनाओं और सिद्धांतों को प्रस्तुत करने के साथ-साथ सहचर्चा के लिए एक मंच तैयार करता है। प्रदर्शनियों के साथ-साथ ‘कोच्चि बिनाले कला फाउंडेशन’ सेमिनारों, कार्यशालाओं और शैक्षिक कार्यक्रम का व्यापक सार्वजनिक आयोजन भी करता है। यह आयोजन रचनात्मक व्यक्तियों, क्यूरेटरों और कला प्रेमियों के वैश्विक समुदाय को एक साथ लाता है।

कोच्चि-मुजिरिस बिनाले के पहले संस्करण से भविष्य की ओर -


‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ अपने विकास के साथ कलात्मक उत्कृष्टता, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और सामुदायिक सहभागिता के अपने मूल सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध रहा है। कोच्चि बिनाले की अवधारणा और स्थापना एक महत्त्वाकांक्षी सपने से शुरू हुई जो कड़ी मेहनत, समर्पण और सामूहिक प्रयास से साकार हुई। यह न केवल भारतीय कला जगत् के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई बल्कि कोच्चि शहर और केरल राज्य के लिए एक गौरवशाली उपलब्धि बनी। इसने भारतीय कला को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दी। ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ का पहला संस्करण एक ऐतिहासिक घटना थी जिसने भारतीय समकालीन कला के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिखा। “पहला संस्करण 12 दिसंबर, 2012 को शुरू हुआ और 13 मार्च, 2013 तक चला। बोस कृष्णमाचारी और रियास कोमु ने इस पहले संस्करण को क्यूरेट किया। इस पहले बिनाले में 23 देशों का प्रतिनिधित्व करते हुए कुल 89 कलाकारों ने भाग लिया जिनमें से 44 भारतीय और 45 अंतरराष्ट्रीय कलाकार थे जो इसे एक वास्तविक अंतरराष्ट्रीय आयोजन बनाता है। लगभग 4,00,000 आगंतुकों ने बिनाले का अवलोकन किया। यह संख्या शुरुआती अनुमानों से काफी अधिक थी जो इसकी लोकप्रियता को दर्शाती है।”(3) वैश्विक कला समुदाय ने इसे एक महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में स्वीकार किया तथा कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया आउटलेट्स ने इसे सकारात्मक कवरेज भी दिया। इस कला महोत्सव में कोच्चि के निवासियों ने बड़े उत्साह से भाग लिया तथा यह शहर में सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए एक नई रुचि का कारण बना। कोच्चि बिनाले का पहला संस्करण न केवल एक कला प्रदर्शनी थी बल्कि यह एक सांस्कृतिक आंदोलन की शुरुआत थी। इसने भारतीय समकालीन कला को एक नई दिशा दी और कोच्चि को वैश्विक कला मानचित्र पर स्थापित किया।



कोच्चि बिनाले के 2014-15 में आयोजित दूसरे संस्करण ने बिनाले की प्रतिष्ठा को और मजबूत किया। “यह संस्करण 12 दिसंबर, 2014 से 29 मार्च, 2015 तक चला जिसका निर्देशन कलाकार जितीश कल्लाट ने किया। इस संस्करण की थीम ‘वाक इन द मंकी गार्डन : इन टाइम्स ऑफ़ अदर्स’ तय की गई। इस संस्करण में 30 से अधिक देशों के लगभग 100 कलाकारों ने भाग लिया तथा बिनाले की कला प्रदर्शनियाँ कोच्चि शहर के आठ प्रमुख स्थानों पर आयोजित की गईं।”(4)


“तीसरे संस्करण ने ‘फॉर्मिंग इन द पुपिल ऑफ एन आई’ थीम के साथ सामाजिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जो 12 दिसंबर, 2016 से 29 मार्च, 2017 तक चला। इसका निर्देशन कलाकार सुदर्शन शेट्टी द्वारा किया गया था। इस संस्करण में 31 देशों के 97 कलाकारों ने भाग लिया तथा कला प्रदर्शनियाँ कोच्चि शहर के बारह स्थानों पर आयोजित की गईं।”(5) इस संस्करण के साथ विद्यार्थियों और स्थानीय समुदाय को शामिल करने के लिए विशेष कार्यक्रम ‘स्टूडेंट्स बिनाले’ व ‘पीपुल्स बिनाले’ की शुरुआत की गई। लगभग 6 लाख लोगों ने इस संस्करण का अवलोकन किया जो पिछले संस्करणों से अधिक था। इस दौरान भारत में नोटबंदी के कारण कुछ लॉजिस्टिक समस्याएँ आईं। यह संस्करण अपने विषय ‘फॉर्मिंग इन द पुपिल ऑफ एन आई’ के माध्यम से दर्शकों को कला के प्रति एक नया दृष्टिकोण प्रदान करने में सफल रहा। इसने न केवल अंतरराष्ट्रीय कला जगत में कोच्चि बिनाले की स्थिति को मजबूत किया बल्कि स्थानीय समुदाय और युवा कलाकारों को भी प्रेरित किया।



‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ का चौथा संस्करण 12 दिसंबर, 2018 से 29 मार्च, 2019 तक आयोजित किया गया। इस संस्करण का निर्देशन कलाकार अनिता दुबे ने किया जिसकी थीम ‘पॉसिबिलिटीज फॉर ए नॉन-अलाइनड वर्ल्ड’ निर्धारित की गई थी। इस संस्करण में 31 देशों के लगभग 95 कलाकारों और कला समूहों ने भाग लिया तथा लगभग 6.5 लाख लोगों ने इस संस्करण का दौरा किया। थीम ने वैश्विक दृष्टिकोण से समकालीन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। लैंगिक समानता और सामाजिक मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया गया। यह संस्करण विविधता, समानता और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर केंद्रित था जो समकालीन कला अवधारणाओं के माध्यम से प्रस्तुत किए गए।


‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ के पाँचवे संस्करण की क्यूरेटर कलाकार व लेखिका शुभिगी राव को नियुक्त किया गया था। “कोच्चि-मुजिरिस बिनाले का पाँचवाँ संस्करण कई मायनों में विशेष था क्योंकि यह कोविड-19 महामारी के बाद पहला बड़ा कला आयोजन था जिसे दो बार स्थगित कर 12 दिसंबर, 2022 से 10 अप्रैल, 2023 तक आयोजित किया जाना था। पाँचवाँ संस्करण अंततः व्यवस्थागत देरी के कारण निर्धारित समय से दो सप्ताह बाद 23 दिसंबर, 2022 से शुरू हुआ जो पहले की तुलना में अधिक डिजिटल और हाइब्रिड प्रारूप में था।”(6) बिनाले फाउंडेशन ने इस समय का उपयोग डिजिटल पहल और वर्चुअल कार्यक्रमों को विकसित करने के लिए किया। कई कार्यक्रम और प्रदर्शनियाँ ऑनलाइन भी उपलब्ध कराई गईं ताकि दुनिया भर के लोग इसमें हिस्सा ले सकें। इसने कोच्चि बिनाले की लचीलापन और नवीनता की क्षमता को प्रदर्शित किया। “इस संस्करण की थीम थी ‘इन आवर वेंस फ्लो इंक एंड फायर’ (In Our Veins Flow Ink and Fire)। इस थीम का उद्देश्य था विविध सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक मुद्दों को सामने लाना जो इस दौर की चुनौतियों से जुड़े थे। यह विषय कलाकारों को अपनी व्यक्तिगत, सामाजिक और राजनैतिक पहचानों की गहराई से जुड़ने और इसे कला के माध्यम से व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। इस बिनाले में दुनियाभर से 80 से अधिक कलाकारों ने हिस्सा लिया।”(7) कला कार्यों में न केवल पारंपरिक शैलियों का प्रदर्शन किया गया बल्कि तकनीकी और डिजिटल माध्यमों का भी उपयोग किया गया जिसमें वीडियो और साउंड आर्ट प्रमुख रूप से शामिल थे।

कोच्चि-मुजिरिस बिनाले की भूमिका –

‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ ने भारतीय कला जगत में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रदर्शनी के साथ-साथ बिनाले स्कूली विद्यार्थियों के लिए वार्ता, सेमिनार, फिल्म स्क्रीनिंग, संगीत, कार्यशालाओं और शैक्षिक गतिविधियों का कार्यक्रम भी आयोजित करता है। अपने कलात्मक महत्त्व के अलावा बिनाले केरल में सांस्कृतिक पर्यटन का एक प्रमुख चालक बन गया है। इसके साथ ही ‘कोच्चि बिनाले फाउंडेशन’ विरासत संपत्तियों और स्मारकों के संरक्षण तथा कला और संस्कृति के पारंपरिक रूपों के उत्थान में भी लगा हुआ है। बिनाले ने कोच्चि और केरल के आर्थिक विकास में भी योगदान दिया है क्योंकि यह आयोजन पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। “केरल के कई प्रतिष्ठित कलाकारों ने कोच्चि-मुजिरिस बिनाले फाउंडेशन द्वारा फंड खर्च करने के तरीके में कथित पारदर्शिता की कमी पर चिंता जताई तथा केरल राज्य के कई समकालीन कलाकार इस आयोजन के समर्थन में आगे भी आए, क्योंकि इस आयोजन से कोच्चि की छवि को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।”(8) महोत्सव में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों को आकर्षित करके सांस्कृतिक पर्यटन के विकास में योगदान भी देता है। कार्यक्रम अवधि के दौरान आगंतुकों का प्रवाह स्थानीय अर्थव्यवस्था को विशेष रूप से बढ़ावा देता है जिससे होटल, रेस्तरां और छोटे व्यवसायों को लाभ होता है। इसके अलावा बिनाले ने कोच्चि को वैश्विक कला मानचित्र पर तारांकित किया है जिससे इसकी सांस्कृतिक गंतव्य के रूप में प्रतिष्ठा बढ़ी है। कोच्चि बिनाले का इतिहास दर्शाता है कि कैसे एक महत्त्वाकांक्षी विचार, सरकारी समर्थन, कलात्मक दृष्टिकोण और समुदाय की भागीदारी के संयोजन से एक विश्व स्तरीय सांस्कृतिक घटना का निर्माण हो सकता है। यह भारतीय कला के विकास और अंतरराष्ट्रीय मान्यता की कहानी है जो निरंतर विकसित हो रही है और नए आयामों को छू रही है।

निष्कर्ष : ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले, ने भारत में समकालीन कला को बढ़ावा देने में उल्लेखनीय  भूमिका निभाई है जिससे देश में कला की नई दिशा और दृष्टिकोण को प्रोत्साहित किया गया है। इस आयोजन ने कला के क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की है और यह भारतीय कला को विश्व स्तर पर प्रदर्शित कर रहा है। ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ महोत्सव ने भारतीय कलाकारों के नए आत्मविश्वास को प्रतिबिंबित करने का प्रयास किया है जो धीरे-धीरे लेकिन निश्चित रूप से एक नए समाज का निर्माण कर रहे हैं जिसका लक्ष्य उदार, समावेशी, समतावादी और लोकतांत्रिक है। बिनाले ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान किया है जिससे उन्हें व्यापक भागीदारी और मान्यता मिली है। बिनाले ने कला और संस्कृति के बीच सेतु का काम किया है जिससे दर्शकों को विभिन्न संस्कृतियों और कलात्मक अभिव्यक्तियों के बारे में जानने का अवसर मिला है। ‘कोच्चि-मुजिरिस बिनाले’ ने कला शिक्षा और रचनात्मकता को बढ़ावा देने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जिससे आम जनमानस को भी कला के प्रति जागरूक किया जा सके।

Installation views of works by Bharti Kher (left) and Ernesto Netto 

सन्दर्भ :
1-https://en.wikipedia.org/wiki/Kochi-Muziris_Biennale
2-https://www.biennialfoundation.org/biennials/kochi-muziris-biennal
3-https://www.kochimuzirisbiennale.org/
4-https://en.wikipedia.org/wiki/Kochi-Muziris_Biennale
5-वही।
6-Open Letter from the Artists of the Kochi-Muziris Biennale 2022–23, www.e-flux.com, 29 December 2022.
7-https://www.artbasel.com/news/kerala-kochi-muziris-biennale-foundation?lang=en
8-Biennale will enhance Kochi's image: artist, The Hindu. 13 January 2012. Retrieved, 14 December 2012

कुमुदिनी भरावा

शोधार्थी, दृश्य कला विभाग, मो.ला.सु. विश्वविद्यालय, उदयपुर


दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक  तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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