शोध आलेख : भारतीय समकालीन चित्रकला में सामाजिक दृष्टिकोण और उसकी प्रयोगात्मक दिशा / प्रशांत कुवर एवं शिवानंद बंटानूर

भारतीय समकालीन चित्रकला में सामाजिक दृष्टिकोण और उसकी प्रयोगात्मक दिशा
- प्रशांत कुवर एवं शिवानंद बंटानूर

शोध सार : भारतीय आधुनिक चित्रकला स्वातंत्र्यपूर्व और स्वातंत्र्योत्तर में धार्मिक परंपरा राजाश्रयितसे स्व अभिव्यक्ति तक पाश्चात्य कलावादों से प्रभावित होकर अपनी पहचान निर्माण कर पाए थे। भारत में प्रदेशानुसार कलागुट बने थे जिसमे इनका आधुनिक चित्रकला में योगदान रहा है।आधुनिकतावाद से अत्याधुनिक तकनीक, माध्यम तक सामाजिक-राजनीतिक एजेंडे से बाजार की जरूरतों के बिना अपनी प्रगतिशील कलासमूह अपना स्थान बना रहे हैं। अपने-अपने विमर्शों से अंतराफलक दिखा रहे है। इसमें अमूर्तनशैली, स्त्रीवाद, और परफॉरमेंस आर्ट है जिसमे भारतीयता के नाम पे मिथ्या, कथानक का संबध नही हैं। समकालीन कला में आधुनिक भारतीय चित्रकला को अलग माना जा रहा हैं। आधुनिक चित्रकला में ऐतिहासिक घटना, आम जनता का जीवन इत्यादि हैं तो इसके विपरित समकालीन कला मे उस युग का प्रतिनिधित्व करते हैं। जहाँ वर्तमान का प्रतिबिंब होता है जो इसी 21वीं सदी में मानव अस्तित्व का परिणाम और भविष्य भी देख सकता है। आधुनिक भारतीय चित्रकला में समकालीन कला की दिशा को देखते हुए अनोखा और रचनात्मक दृष्टिकोण भी मिलता है। साथ हीं लोगो को अधिक रचनात्मक तरीकेसे सोचने में मदद मिल सकती है।

बीज शब्द : समकालीन कला, आधुनिकता, अत्याधुनिक तकनीक, माध्यम, प्रभाव, सामाजिक, राजनीतिक, सृजनशील विचार, परफॉरमेंस आर्ट, औद्योगिक क्रांति

मूल आलेख : यह ज्ञात ही हैं कि आधुनिक चित्रकला का विकास पश्चिमी देशों में पहले हुआ तत्पश्चात भारत में हुआ है। विश्वभर में हुई औद्योगिक क्रांतियों, युद्धों और आंदोलनों से उत्पन्न परिवर्तनों ने सामाजिक, राजनीतिक और कलाके क्षेत्रों को आधुनिकता की ऊँचाइयों तक पहुंचाया है। इस संदर्भ में प्रभाववाद,घनवाद, बिंदुवाद, अभिव्यक्तिवाद, दादावाद और अतियथार्थवाद जैसे कला आंदोलन हुए जो पारंपरिक शैलियों से हटकर प्रायोगिक दृष्टिकोण और संकल्पनात्मक कला निर्माण की दिशा में बदल गए, इसका प्रारंभ 𝟏𝟗वीं सदी के अंत और 𝟐𝟎वीं सदी के शुरुआत में हुआ था(1)। दो विश्वयुद्धों के परिणाम स्वरूप कलाजगत पर उसका प्रभाव देखने को मिलता है जिसने आधुनिक कला को नए आयाम दिए। ऐसा हमें पश्चिमी देशों में देखने को मिलता है। भारत में भी ब्रिटिश शासनकाल में कला आंदोलन हुए जिसमें स्वदेशी आंदोलन भी शामिल था। उस समय चित्रकला के क्षेत्र में भी स्वतंत्रता की आवश्यकता थी और राजा रविवर्मा ने पाश्चात्य तकनीकों में भारतीय देवताओं के तेल चित्रण के माध्यम से सामान्य जनको उनकी पूजा का हक दिया। यहाँ से आधुनिक भारतीय चित्रकला का आरंभ होता है। इसकी शुरूआत बंगाल के पुनरुत्थान कला आंदोलन से हुई जिसमें स्वदेशी,राष्ट्रवादी आधुनिक कला को महत्वपूर्ण माना गया। इस में अवनिंद्रनाथ टैगोर अपनी चित्रकारिता के माध्यम से 𝟏𝟗वीं सदी के आधुनिक चित्रकला के प्रमुख नेता बने(2)।

𝟐𝟎वीं सदीके अंतिम दशकमें हुए पुनरावलोकन में देखा गया कि पहले की तुलना में आधुनिक भारतीय चित्रकला अब पारंपरिक शैलियों को परिचायित  नही करती है बल्कि भारतीय चित्रकारों की चेतना को एक नई दिशा की ओर बदलती है। भारतीय आधुनिक चित्रकला सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश से गहरायी से जुड़ी हुई है जब कि इसकी सीमा और मात्रा समय के साथ बदलती रहती है। यह सामाजिक सचेतता और अभ्यास से आत्म जागरूकता और सत्यापन के साथ चित्रित होती है। जिसमें कलाकार समाज की वास्तविकता को अपनी सृजनशीलता से स्व-अभिव्यक्ति की पहचान के लिए जोड़ता है। भारतीय आधुनिक चित्रकला की विशेषताओं की व्याख्या करना अब भी सम्भावनाओं की बात है क्योंकि भारतीय चित्रकारों पर आज भी पाश्चात्य देशों के कलावादों का प्रभाव है। जिसमें उनका सृजनात्मक और प्रयोगशील कार्य दिखाई देता है।स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजों के आनेसे पहले भारतीय चित्रकार राजा-महाराजा, महंत और धार्मिक प्रथाओं के लिए चित्र बनाते थे और इन्होंने अंग्रेज़ी शासनके खिलाफ आवाज़भी उठाई। इस प्रकार भारतीय चित्रकार इनके शासनके चंगुल से मुक्त होते हुए अपने स्वतंत्र अस्तित्व की दिशा में बढ़ते गए। इसके लिए कि सीभी देश की कला को समझने के लिए उसके कला आंदोलनके विभिन्न कलाकारों की कलाएं देखनी चाहिए(3)। स्वतंत्रतापूर्व और स्वतंत्रता के पश्चात भारत में हुए विज्ञान और तकनीक के विकासने बहुत से चित्रकारों को उनकी चित्रकला में आधुनिकता लाने के लिए प्रेरित किया है। भारत सरकार ने इस दिशा में सहायता देने के लिए ललित कला अकादमी का गठन किया जो कलाकारों को मार्गदर्शन करता है। इसके अलावा सरकारी और गैर-सरकारी कला संस्थाएं भी चित्रकला के क्षेत्र में अपना योगदान देर ही हैं। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के चित्रकारों को इस दिशामें सहायता प्रदान करने के लिए भारतीय पारंपरिक कला को भी संरक्षित रखने की आवश्यकता है और इस पर चर्चा करना हमेशा समिचीन रहेगा। समकालीन परिप्रेक्ष्य में आधुनिक चित्रकला को भारत में सही दिशा देने के लिए शोध करने की आवश्यकता है। वर्तमान समयमें चित्रकलामें नए माध्यमों का प्रवेश होर हा है जो विशेषतः स्थानीय और वैश्विक समाजिक-सांस्कृतिक विषयों को साधने में मदद कर रहे हैं। दृश्यकला, फोटोग्राफी, डिजाइन, ग्राफिक्स और संगीत सहित नए और नवाचारी माध्यमों ने चित्रकला की नई दिशा को प्रेरित किया है। ये माध्यम चित्रकलाको अद्वितीयता और अभिव्यक्ति की नई रूपरेखा में अग्रेषित कर रहे हैं(4)।

वर्तमान में आधुनिक चित्रकारी समाज की आलोचनात्मक और संवेदनशीलता से जुड़े मुद्दों को भी अभिव्यक्ति देर ही है। इस में कलाकार समाज की चुनौतियों, समस्याओं और संवेदनशीलता को अपने चित्रोंके माध्यमसे व्यक्त करता है।जिससे दर्शकों को सोचने पर मजबूर किया जाता है। सैद्धांतिक चित्रकला के माध्यमसे चित्रकार नए सोचने के तरीकों को आगे बढ़ाते हैं और समाज में सकारात्मक परिवर्तन की राह बना ते हैं। आधुनिक चित्रकला में सांस्कृतिक संदेश को अद्वितीय रूपसे पहुंचाने के लिए संगीत, नृत्य और डिजाइन का महत्व है।ये माध्यम चित्रकला को विविधता और समृद्धिकी दिशा में बदलते हैं और सांस्कृतिक विरासत का समाधान करने का एक नया तरीका प्रदान करते हैं।

इस प्रकार आधुनिक चित्रकला ने नए माध्यमों के साथ तेजी से सुसज्जित और समृद्ध होते हुए समाज के साथ गहराई से जुड़ने का साहस किया है। यह न केवल चित्रकला क्षेत्र में नए दिशा निर्देश प्रदान कर रहा है बल्कि सामाजिक,सांस्कृतिक और तकनीकी परिवर्तनोंके साथ मिलकर समृद्धिकी राह में आगे बढ़ रहा है।

मूल विषय का विश्लेषण और चर्चा:-

आधुनिक चित्रकला की व्याख्या और व्याप्ति- पारंपरिक शैलियों से हटकर संकल्पनात्मक, प्रायोगिक, नवयोजन, सृजनशील विचार और तकनीक के साथ आधुनिक चित्रकला नई विषय वस्तु की कला आंदोलनको वर्णित करती है। इसमें जीवंत रंगों और लेपन पद्धति का सटीक प्रयोग,सार, अभिव्यंजक रूप और आकार, गति, समय, स्थान जैसी नई अवधारणाएं नई खोजें की गई हैं। इसका आरंभ 19वीं सदीके अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में हुआ था। इसमें विभिन्न प्रमुख कलावाद जैसे प्रभाववाद, अभिव्यक्तिवाद, घनवाद, फॉर्मलिज्म और अन्य उभरे। ये सभी कलावाद निर्माण होने में वैश्विक औद्योगिक क्रांति के साथ विश्वयुद्ध और अन्य कई कारणों के परिणाम थे। भारत छोड़कर अन्य पाश्चात्य देशों  में आधुनिक क्रांति के साथ चित्रकला में आधुनिकता आने लगी थी। इस प्रक्रिया में राजा रविवर्मा के तेलचित्रण का महत्वपूर्ण स्थान है जिनके तेल चित्रों ने सामान्य जन के बीच प्रचलित होकर चित्रकला को सार्वजनिकता में लाने में सहायक हुआ।

भारतीय कला में पाश्चात्य आधुनिक चित्रकला के प्रभाव-

अंग्रेजों के आने के बाद भारतीय पारंपरिक कला से अलग होकर ब्रिटिशों के द्वारा कला अकादमी स्कूल शुरू किए गए और इन स्कूलों से पाश्चात्य कला के सूत्रों का समुचित अंग मिलने लगे। इसके साथ ही भारतीय चित्रकला में आधुनिकता के विचार माध्यम का प्रवेश और स्वदेशी आंदोलनके साथ पुनरुत्थान हुआ। राजा रविवर्मा के तेल चित्रों के बाद कलागुरु अवनिंद्रनाथ ठाकुर को सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी आधुनिक चित्रकला का नेता माना गया। इसके साथ ही नंदलाल बोस, जामिनी राय, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अमृता शेरगिल, चित्तोप्रसाद, जैनुल आबेदीन, कमलरूल हसन, एम.एफ.हुसैन, रजा, सुजा, बेंद्रे, आरा, गायतोंडे, बर्वे, पलशीकर और अन्य कलावादियों ने भारतीय चित्रकला में आधुनिकता को बढ़ावा दिया(5)।

20वीं सदीके अंत में भी पाश्चात्य कला का प्रभाव भारत में बहुत तेजी से बढ़ रहा था। भारतीय चित्रकारों ने अपनी कला में पॉलक्ली, जैक्सन पोलक, वैनगॉग, पिकासो, फ्राइड और अन्य प्रसिद्ध चित्रकारों के प्रभावको पूर्णरूप से अपनाया। इसमें प्रभाकर कोलते, जतिन दास, लक्ष्मा गौड़, ज्योति भट्ट, जोगेन चौधरी, पलानी अप्पन और अन्य प्रमुख भारतीय चित्रकारोंने भी पाश्चात्य आधुनिक चित्रकला का प्रभाव दिखाया(6)।

भारतीय पारंपरिक कला शैली,विषय और आधुनिक भारतीय चित्रकला-

भारत में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्मों का प्रभाव रहा है और इसने चित्रकला को अपने विभिन्न रूपों में प्रकट किया है। इसमें मधुबनी, वर्ली, पट्टचित्र, तंजोर और राजस्थानी लघुपेंटिंग जैसी प्रमुख पारंपरिक भारतीय चित्रकला शामिल है। ये पारंपरिक कला धार्मिक और पौराणिक विषयों पर केंद्रित थी और प्राकृतिक रंगों मिट्टी और वनस्पति रंगों का उपयोग करती थीं।आधुनिक भारतीय चित्रकला एक नए दौर की शुरुआत है जिसमें कलाकारोंने विभिन्न माध्यमों शैलियों और तकनीकों का उपयोग करके नई दिशाएं खोजी है। यह आधुनिक चित्रकला व्यापक दर्शकों के लिए अधिक सुलभ है और सार्वजनिक प्रदर्शनोंके माध्यम से समाज में प्रसारित होती है(7)। आधुनिक भारतीय कलाकारोंने डिजिटल माध्यम और नवीनतम तकनीकी उपकरणोंका उपयोग करके एक विशेष मालिका तक पहुंचा है।उनके कार्यों को अंतरराष्ट्रीय कला मेलों और प्रदर्शनियों में प्रदर्शित किया गया है जिससे भारतीय कला की गुणवत्ता और विविधता को विश्व में प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार पारंपरिक और आधुनिक कला दोनों ही अपनी अपनी विशेषताएं और महत्वपूर्ण योगदान देती हैं और भारतीय कलाको समृद्ध और समृद्धिका स्रोत बनाए रखने में मदद करती है। कलाकारों और कलाप्रेमियों को समान रूपसे प्रेरित करती है जो समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक चुनौतियों के साथ निरंतर रूपसे मुकाबला कर रही हैं(8)।

19वीं सदी से 21वीं सदी तक आधुनिक कला में परिवर्तन और विकास-

आधुनिक कला एक सांस्कृतिक आंदोलन था जो पूरे यूरोप में 19वीं से 20वीं सदी तक बदलाव और विकास का सामना कर रहा था। इस आंदोलन ने विभिन्न कला ओं और शैलियों को जन्म दिया जैसे कि इम्प्रेशनिज्म, एक्सप्रेशनिज्म, क्यूबिज्म, स्यूरीयलिज्म और अमूर्ततावाद। इस आंदोलनने कला में नई दिशाएं खोली और रंग-बिरंगे और विशेष तकनीकों का उपयोग किया। आधुनिक कला के परिवर्तन के साथ कलाकारों ने मानव जीवन और समाज के विभिन्न पहलुओं को नए दृष्टिकोण से देखा(9)। इसमें शहरी जीवन, औद्योगीकरण, युद्ध, राजनीति और सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखा गया। इसके परिणाम स्वरूप कला के क्षेत्र में नए विषय, नए रूप और नए संदेशों का आगमन हुआ। इसी दौरान नई तकनीकियों का भी विकास हुआ जैसे कि फोटोग्राफी विशेष रंग प्रक्रियाएं और डिजिटल मीडिया। इन तकनीकों ने कलाकारों को नई स्वतंत्रता और संभावनाओं के साथ अपनी कला को व्यक्त करने का अवसर दिया। कला में इस आंदोलनका सीधा प्रभाव 20वीं सदी में हुआ जब एक्सप्रेशनिज्म और अबस्ट्रैक्शनिज्म जैसे नए शैली उत्पन्न हुईं। एक्सप्रेशनिज्म में कलाकारों ने अपनी भावनाओं और विचारोंको स्वतंत्ररूप से व्यक्त करने का प्रयास किया जबकि अबस्ट्रैक्ट आर्ट में कलाकारोंने अधिक से रंगरूप और रेखाओं का अभ्यास किया(10) इस दौरान विशेष कर रूसी कलामें सुप्रसिद्ध चित्रकारों जैसे कि वासिली कंडिंस्की और मार्क शगाल ने विशेष रूपसे कलाको बदला। इसके अलावा एक्सप्रेशनिज्म और अबस्ट्रैक्शनिज्म का प्रभाव पूरे विश्व में बढ़ा जिससे कला के क्षेत्र में नई आवृत्तियां और विरासतें उत्पन्न हुईं। इसी समय दुनियाभर में सांगठनिक रूप से स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कला प्रदर्शनीयों की शुरुआत हुई जिससे कलाके क्षेत्र में विभिन्न शैलियों और कलाओं की स्वीकृति हुई।

21वीं सदी में कलाके क्षेत्रमें सीधे प्रभाव-

21वीं सदी में कलाके क्षेत्र में कई बड़े परिवर्तन और सीधे प्रभाव हुए हैं। नए मीडिया और डिजिटल प्रौद्योगिकी के आगमन ने कलाकारों को नए और नवीनतम माध्यमों का उपयोग करने का अवसर दिया है। इसके साथ ही डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया की प्रचलन ने कला की पहुंच और प्रसारण को बढ़ावा दिया है। कला के क्षेत्र में विभिन्न रूपों शैलियों और अभिव्यक्तियों में विकास का एक और पहलु दृष्टिगत किया जा सकता है जो समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक चुनौतियों के साथ निरंतर रूप से मुकाबला कर रही हैं। नए और आधुनिक तकनीकी उपकरण,इंटरैक्टिव आर्ट,वर्चुअल रिएलिटी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसके साथ कलाकार नई दिशाओंमें अपनी कला को व्यक्त कर रहे हैं(11)।

इसी तरह आधुनिक कलाने समयके साथ अपनी दिशा बदलते हुए समाज,प्रौद्योगिकी और मानव अनुभवके साथ सामंजस्य बनाए रखा है। यह एक स्थायी प्रक्रिया है जो समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखने के साथ-साथ आधुनिकताकी दिशा में कला को एक नया आयाम प्रदान कर रही है।

चर्चा:- नए कला माध्यम का प्रयोगात्मक आगमन

1.अतुल डोडिया- मुंबई स्थित समकालीन भारतीय चित्रकार अतुल डोडिया ने अपने कला के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास में हस्तक्षेप करने का एक अद्वितीय तरीके से स्वयंको साबित किया है।उनकी चित्रशैली विशिष्ठता से अधुनिकतावादी हठधर्मिता की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव को उजागर करती है।उनके चित्रों में समाज के मुद्दों का स्पष्ट और प्रभावी प्रस्तुतीकरण होता है। अतुल डोडियाने फरवरी 2002 में गुजरातमें हिंदू-मुस्लिम दंगों के दौरान हुए नरसंहार पर अपनी चित्रकला के माध्यमसे एक क्रियाशील रूपसे प्रतिक्रिया दी है जैसाकि उनका गांधी जी का चित्र दिखाता है। इससे साफ होता है कि उनका उद्देश्य समाज  में सुधार और न्याय की प्रेरणासे भरा है।डोडिया ने अपनी चित्र चित्रशृंखलाएं बनाते समय नए माध्यमों का सही रूपसे उपयोग करने का प्रयास किया है जैसे कि उनकी शटर पर बनी चित्रशृंखला दिखाती है जो देखने के बाद एक अलग चित्र स्थित होता है।

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चित्रः1गांधी, माध्यमःशटर दरवाजा, अतुल डोडिया. (स्रोत- इन्टरनेट)

2.स्मिता किंकले- मुंबई स्थित स्त्री चित्रकार स्मिता किंकले एक प्रोफेसर और एक अभिज्ञान कला शैली की कलाकार हैं। उन्होंने अपने चित्रों में प्लास्टिक का उपयोग करके एक नई दिशा प्रदान की है जिससे उन्होंने वातावरणिक मुद्दों को उजागर किया है। किंकले की चित्र शृंखलाएं प्लास्टिक की समस्या और उसके पर्यावरणीय प्रभावों पर आधारित हैं। उनका माध्यम प्लास्टिक सीट पर वैसाही सामग्री है जैसे कि जिससे वह प्लास्टिक को मूर्तिकला में परिणामी रूप से प्रयोग करती हैं। स्मिता किंकले की चित्रकला में नवीनता का तात्पर्य न केवल माध्यम का अनौपचारिक उपयोग है बल्कि उनके विचार भी आधुनिक और समाजशास्त्रीय हैं। उनकी चित्रकला समाज की आधुनिक समस्याओं पर चिन्हित है और उन्होंने प्लास्टिक समस्या को एक कलात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है।

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चित्रः2 -नीयो नेचर, माध्यमःप्लास्टिक, स्मिता किंकले.( स्रोत-इन्टरनेट)

निष्कर्ष : स्वतंत्रतापूर्व और स्वातंत्र्योत्तर भारत में हमने देखा है कि राजाश्रय में धार्मिक परंपरा के दायर में चित्रकला कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से समाज को दर्शाने का प्रयास किया है। ब्रिटिश शासनके परिणाम स्वरूप नई कला शिक्षा के साधन से 19वीं और 20वीं शती में आधुनिक चित्रकला का परिवर्तन हुआ। इस दौरान कुछ कलागुट जैसे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप,शिल्पिचक्र ग्रुप,बंगाल ग्रुप और चोला मंडलम आर्ट ग्रुप आदि ने अपने विचारों को प्रस्तुत करने में अच्छा कार्य किया। इन समूहों के प्रभाव से नए चित्रकार आज अपने अद्वितीय रूप में अपनी पहचान बना रहे हैं जैसे कि अतुल डोडिया और स्मिता किंकले। भारतकी कला गैलरियों जैसे कि के. प्रेस्कोट आर्ट गैलरी मुंबई, एनजीएमए मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, कलकत्ता, चेन्नई जैसे शहरों में भारतीय कला संग्रहालय ललित कला अकादमी और निजी कला संस्थाएं संग्रहालय और कला आन्दोलनों में नए चित्र कलाकारों को समर्थन और अवसर प्रदान कर रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के कलाकारों को भी मुख्यधारा में आने के लिए उत्साहित किया जा रहा है जिससे समृद्धि का नया सामर्थ्य बनता है। सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों के साथ-साथ भारतीय कला प्रदर्शनी में पारितोषिक और छात्रवृत्ति के माध्यम से कलाकारों को सम्मानित किया जा रहा है जिससे उन्हें आत्मविश्वास मिलता है और वे अधिक समर्थ हो रहे हैं। इससे समकालीन भारतीय चित्रकला ने आधुनिकता की दिशा में बदलाव करते हुए सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर विचार कर कलाकृति का निर्माण किया है। भारतीय समकालीन कला में आधुनिक भारतीय चित्रकला की दिशा आज भी सकारात्मक है। इसमें अत्याधुनिकता को समाहित करने के लिए नए कला आयामों कि जैसे इंस्टॉलेशन, परफॉर्मेंसआर्ट, फेमिनिज्म, डिजिटल तकनीक, सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक मुद्दों को छूने का प्रयास किया गया है। इसमें विजुअल आर्ट्स के नए मीडिया को शामिल करते हुए जैसे कि प्लास्टिक आर्ट विभिन्न पेंट करने के लिए नए माध्यम और अन्य आधुनिक शैलियों को भी अवगत किया गया है जिससे कला ने नए रूपों में व्यक्ति तथा समाज के साथ संवाद का सृजन किया है। साथ ही समकालीन कला में नए मीडिया को शामिल करके चित्रकला ने सीमाएं पार करते हुए समस्त दुनिया को अपनी वाणिज्यिक, सांस्कृतिक और रूचिकर भाषा में दर्शाया गया है। साथ-साथ डिजिटल तकनीक और सृजनशील विचारों को शामिल करते हुए अपनी दिशा को मोड़ रही है।

सन्दर्भ :
  1. अशोक भौमिक; 2014, समकालीन भारतीय चित्रकलाः हुसैनकेबहाने, अजंता प्रकाशन,आईएसबीएनः 109381923191, Page no.-46-48
  2. अमृता पाटिल; 2022, आर्ट एण्ड कल्चर नोट्स, आर्टिकल प्रेपए कॉलेज दुनिया, page no.1-4
  3. प्रेमचंद गोस्वामी, आधुनिक भारतीय चित्रकला के आधारस्तम्भ, राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी प्रकाशन,आईएसबीएनः 9789390571710, page no.7-11
  4. अशोक भौमिक; 2022, भारतीय कला का सच, परिकल्पना प्रकाशन,आईएसबीएनः 9788195164004, page no.136-141
  5. गिरिराज किशोर अग्रवाल, 2019, आधुनिक भारतीय चित्रकला, संजय प्रकाशन, आईएसबीएन:JT72तT5THB, page no.2-3
  6. गगनदीप कौर; 2023, भारतीय आधुनिक चित्रकला पे दृष्टिक्षेप, आईएसबीएनः25822160977/2582216018 , page no.2-5
  7. पाउलो नूनो मार्तिस, 2012, परस्पेक्टिव ऑन द इन ऑफ मॉडर्न इंडियन पेंटिंग एंड क्वांटम हेकेनिक्सःअ कॉमन सोर्स ऑफ रिसर्च ऑन फिजिकल रियलिटी स्कॉलर जर्नल एंड सोशल साइंएसेस,आईएसबीएनः2347-9493, page no.3-8
  8. जगतेज कौर ग्रेवाल; 2023, मानव स्थिति के संबध में सामाजिक सामग्री आधुनिक भारतीय चित्रकारमे; 1950-2000, इन्डियन हिस्ट्री कांग्रेस, 14/2023, page no.5-6
  9. रमिन जहांबेगलू; 2008, द स्टोरी ऑफ मॉडर्न इंडियन आर्ट, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय प्रेस प्रकाशन, आईएसबीएनः 9780199080342, page no. 2-8
  10. सनी चंदीरामानी; 2022, मॉडर्निस्ट व्हू चैंज्ड द फेस ऑफ इन्डियन आर्ट,डेली आर्ट मैगजिन ;आर्ट हिस्ट्री ऑफ इंडिया, page no.1
  11. इन्डियन आर्ट हिस्ट्री.कॉम, page No.1
  12. स्टूडियो बाइंडर ऑनलाइन ऑर्टिकल. page No.1
  13. कंटेम्पररेरी इन्डियन आर्ट, 29 ऑगस्ट 2023, ऑनलाइन आर्टिकल, page No.1-3
  14. Paragin.com
  15. medium.com/art 
प्रशांत कुवर.(शोधार्थी-दृश्यकला)
कर्नाटक केंद्रीय विश्वविद्यालय,कलबुरगी.

शिवानंद बंटानूर

दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक  तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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