अनुक्रमणिका : 'अपनी माटी' का 39वाँ अंक
धरोहर
बतकही
वैचारिकी
- लोक रंग और भूमंडलीकरण की किस्सागोई -डॉ. गजेन्द्र मीणा
- तुलनात्मक साहित्य के फ्रांसीसी सम्प्रदाय की आलोचना -डॉ. अभिषेक रौशन
सिनेमा की दुनिया
- मनोरंजक जनमाध्यम के रूप में ओटीटी प्लेटफार्म की स्वीकार्यता में कोरोनाकाल की भूमिका -कुमार मौसम व प्रो. प्रशांत कुमार
- मनोरोग का हिंदी सिनेमा के परिप्रेक्ष्य में अवलोकन -डॉ. रंजना तिवारी व डॉ. साधना श्रीवास्तव
- आरंभिक फिल्म पत्रकारिता, फिल्म इंडिया और बाबूराव पटेल : सिनेमाई-बोध और युग-चेतना -डॉ. समरेन्द्र कुमार
- लोकप्रिय हिंदी सिनेमा और स्त्री विमर्श -लक्ष्मी एवं प्रो. संजीव कुमार दुबे
पत्रकारिता के पहाड़े
- संचार की दुनिया में इंटरनेट,मोबाइल और सोशल मीडिया -डॉ. कपिलदेव प्रसाद निषाद
- विज्ञापन का उद्भव एवं विकास -डॉ. प्रियंका श्रीवास्तव
- कृषि विकास में जनसंचार माध्यमों का योगदान -बनवारी लाल यादव
- स्वतंत्रता-संघर्ष, हिंदी पत्रकारिता और मदनमोहन मालवीय -डॉ. शत्रुघ्न कुमार मिश्र
- कोरोना काल में सोशल मीडिया और युद्धरत स्त्री -डॉ. रक्षा गीता
- समाचार पत्र पाठकों का डिजिटल मीडिया की ओर बढ़ता रुझान -सूरज कुमार बैरवा व मोनिका राव
- समाज और व्यवसाय पर सोशल मीडिया का प्रभाव : एक समीक्षा -सोम देव
- असमीया पत्रकारिता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य एवं तत्कालीन प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ -प्रियंका कलिता
- कृत्रिम बुद्धिमता के प्रयोग का प्रिंट मीडिया उद्योग से जुड़े हुए पत्रकारों, सम्पादकों तथा समाचार पत्र के स्वामियों के कार्य निष्पादन पर प्रभाव : एक अनुभवजन्य अध्ययन -प्रियंका शर्मा व डॉ. गुरेन्दर पाल डंग
संघर्ष के दस्तावेज
- कृषि कानूनों पर किसान आन्दोलन में मीडिया व ग्राम पंचायतों की भूमिका का आलोचनात्मक अध्ययन -सुरेन्द्र एवं डॉ. तिलक राज आहूजा
- किसानों पर आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण एवं वैश्वीकरण के प्रभावों का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन -सुरेश कुमार भावरियॉ
- दलित बचपन और पारिवारिक हिंसा -डॉ. रितु अहलावत
- प्रो. श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ की कविता का दलित स्वर -अनुज कुमार
- सलाम आखिरी में अभिव्यक्त वेश्या जीवन का यथार्थ -अंशिता शुक्ला
- दिव्यांग की अवधारणा और समानता के अवसर - संगीता कुमारी
हूल-जोहार
समानांतर दुनिया
- हिंदी की स्त्री पत्रिकाओं में विज्ञापन : अंतर एक सदी का -आकाश कुमार
- स्त्री सौन्दर्य एवं आत्म छवि : वक्ष कैंसर के सन्दर्भ में ‘भया कबीर उदास’ का एक समालोचनात्मक अध्ययन -डॉ. पृथ्वीराज सिंह चौहान एवं डॉ. कप्तान सिंह
- विष्णु प्रभाकर की आत्मकथा ‘पंखहीन’ में स्त्री अस्मिता -वीनू एवं डॉ. प्रमोद कुमार तिवारी
- हिन्दी नवजागरण के स्त्री सरोकार और दयानन्द सरस्वती के विचार -दीपिका दत्त
- सत्ता के वर्चस्ववाद का स्त्रीवादी दृष्टिकोण -मेघना यादव
विरासत
- पश्चिमी बनास नदी घाटी, सिरोही में मध्यकालीन पुरास्थलों की खोज: एक सर्वेक्षण -चिंतन ठाकर
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर का शिक्षा दर्शन -हेमाराम तिरदिया एवं प्रो. कान्ता कटारिया
- स्वरोजगारपरक महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अध्ययन-नीरू बिष्ट एवं डॉ. भोपाल सिंह रावत
- प्राचीन भारत में स्त्रियों के सांपत्तिक अधिकारों का एक अवलोकन -स्वाति अग्रवाल
- शोध पत्र : देव कृत ‘रस विलास’ में वर्णित नायिकाभेद : एक आलोचनात्मक विश्लेषण (आधुनिकता के सन्दर्भ में) -डॉ. सीमा रानी एवं रीना
लोक का आलोक
- संस्मरण : स्मृतियों में मेरा गाँव –गगन तिवारी
- पूर्वी उत्तर प्रदेश के रूदन गीतों का मानवशास्त्रीय अध्ययन -वीरेंद्र प्रताप यादव एवं शिव बाबू
- शोध आलेख : मॉरीशस के भोजपुरी लोकगीतों में प्रवासन का संदर्भ - डॉ. प्रियंका कुमारी
अनकहे-किस्से
दीवार के उस पार
- आधुनिक हिंदी साहित्य और मुस्लिम समाज की उपस्थिति -तृप्ति त्रिपाठी
- तालिबान की सत्ता में वापसी पाकिस्तान के लिए अवसर या चुनौती -डॉ. मोहन लाल जाखड़
देशांतर
- स्वतंत्र भारत में श्रमिक जीवन की चुनौतियाँ और नयी सदी के हिन्दी उपन्यास -ओम प्रकाश
- नागार्जुन के उपन्यासों में सांस्कृतिक मूल्य -रोशन लाल एवं डॉ. कामराज सिन्धू
- मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यास ‘इदन्नमम’ में स्त्री सशक्तिकरण -पुरबी कलिता
- टूटती मान्यताएं एवं जीवन संघर्ष की कथा: थके पांव -डॉ. कुलवंत सिंह
- माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत शिक्षिकाओं के तनाव स्तर का तुलनात्मक अध्ययन-दीपिका नेगी एवं प्रो0 भीमा मनराल
- पडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद का प्रारम्भिक विश्लेषणात्मक अध्ययन-राहुल कुमार एवं प्रो. (डॉ.) टी.सी. पाण्डेय
- कालिदासीय एवं आधुनिक समाज में स्त्री-कृती भारद्वाज
कवितायन
- अदम गोण्डवी : यथास्थितिवाद के विरुद्ध मुक्तिकामी चेतना का कवि -आनंद पांडेय
- नई आशा का सौन्दर्य है त्रिलोचन की कविताएँ -डॉ. प्रवीण कुमार
नीति-अनीति
- भारतीय संघीय व्यवस्था और नये राज्यों की मांग -ज्योति चायल एवं डॉ. कान्ता कटारिया
- 21वीं सदी के भारत में चुनावी जनसहभागिता की स्थिति -रजनी गगवानी
- महात्मा गांधी का सर्वोदयी विमर्श -त्रिपुरारी उपाध्याय
- दक्षिण एशिया और ग्लोबल वार्मिंग : भारत पर प्रभाव -रवि कुमार एवं डॉ. अपर्णा
- माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर उनके पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक वातावरण का प्रभाव -अर्चना कुमारी एवं डॉ. कुमारी स्वर्ण रेखा
- जल प्रशासन एवं जल अधिकार: भारतीय कानून एवं नियमन का एक अवलोकन-डॉ. आशुतोष मिश्रा,डॉ. प्रकाश त्रिपाठी,सूरज कुमार मौर्य
- माध्यमिक स्तरीय बच्चों के व्यक्तित्व एवं शैक्षणिक उपलब्धि पर कामकाजी एवं गैर कामकाजी माताओं के प्रभाव -नीतू सिंह एवं प्रो. बिनय कुमार चौधरी
- दृष्टिबाधित विद्यार्थियों के जीवन में मीडिया माध्यमों की भूमिका का अध्ययन ( भोपाल शहर के विशेष संदर्भ में ) - प्रज्ञा गुप्ता एवं डॉ. मनीषकांत जैन
बींद-खोतली
- उद्योग 4.0 : उत्पादन के नए साधनों का समाज तथा उसके सरोकार -राजीव कुमार पाण्डेय एवं डॉ. सिद्धार्थ शंकर राय
- शोधगंगा में राजस्थान के विश्वविद्यालयों का योगदान : एक अध्ययन -जितेन्द्र सुहालका
- महामारी और हिंदी कथा साहित्य -डॉ. प्रिया कुमारी
- डिजिटल अर्थव्यवस्था पर मीडिया प्रभाव -देवेन्द्र राज सिंह
अध्यापकी के अनुभव
समीक्षायन
- पुस्तक समीक्षा : आदमी की निगाह में औरत -विष्णु कुमार शर्मा
- डॉ. स्नेह लता नेगी के साहित्य में आदिवासी स्त्री चिंतन के स्वर-त्रिपुरेश गोंड
- इतिहास और प्रकृति की पड़ताल करती यात्राएं -हेमंत कुमार
- स्वतंत्र सदी में युद्ध लड़ रही स्त्रियाँ / डॉ. जुगुल किशोर चौधरी
कथेतर का कौना
- बुलाकी शर्मा की व्यंग्य- सृष्टि में आलोचना-दृष्टि -निर्मल कुमार रांकावत
- शोध आलेख : उत्तर आधुनिकता ‘गायब होता देश’ के संदर्भ में -डॉ. चौधरी राजेन्द्र कुमार एस.
संपादक मण्डल को इस नए अंक के लिए हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अंक के लिए बधाई, साधुवाद।
जवाब देंहटाएं'अपनी माटी' हिन्दी साहित्य और समाज की बहुचर्चित वेब पत्रिका है। इस पत्रिका के प्रकाशन का प्रमुख उद्देश्य साहित्य, समाज और संस्कृति को प्रकाश में लाना है। जिस तरह से इस ई-पत्रिका का नाम 'अपनी माटी' है, उसी तरह यह पत्रिका अपनी माटी की बात करती है। जल, जंगल, जमीन की बात करती है। किसान, मजदूर की बात करती है और उस प्रत्येक तबके की बात करती है जो समाज में हाशिए पर हैं। ई-पत्रिका का नवीन 39वाँ अंक एक शानदार अंक है। यह अंक अपने कलेवर में संपूर्ण साहित्य को समेटे हुए है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह ई-पत्रिका आने वाले समय में अपने इन्ही बेहतरीन अंकों की बदौलत साहित्य और समाज की एक अतुलनीय निधि बनेगी।
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